Journey : यात्रा
सीढ़ी अफ़सोस नहीं करती.. सीढ़ी अनंत यात्राएँ करती है.. ऊपर से गुज़रते हर कदम के साथ !
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सीढ़ी अफ़सोस नहीं करती.. सीढ़ी अनंत यात्राएँ करती है.. ऊपर से गुज़रते हर कदम के साथ !
आंख का कोई विकल्प नहीं था मनुष्य के पास… देखने की शक्ति और जो देखा उसे निचोड़कर दिमाग की मदद से दृष्टिकोण बनाने की अद्भुत शक्ति आँखों में ही है.. … Continue reading The Camera Project : सत्य, नज़रिया और कैमरा
जो धूल.. कीचड़ में सने हैं.. प्रेम और एसिड से जले हैं.. जिन पर जीवन के निशान पड़े हैं.. जो दौड़ते भागते बच्चे हैं.. वही लगते सच्चे हैं
इस कविता का जो केंद्रीय पात्र है.. वो आपकी ही तरह तैरता है हर रोज़, समय के सागर में… जहां ऊँची, तूफ़ानी लहरें आती हैं.. वहां घड़ी की सुइयों के … Continue reading Interspace : दूरी
हर उपभोक्ता की मंद मंद मुस्कान में .. निर्माता के पैरों की बेवाइयां दिखती हैं ..
इस विचार को मन के मर्तबान में डाला.. धूप में रख दिया.. फिर जो बना.. वो ये रहा.. थर्मोकोल, कांच, लकड़ी, मिट्टीअन्याय, हिक़ारत, ठंडा लहू , खौलते हुए तानेसब पचा … Continue reading Digestive System : पाचन शक्ति
आसमान में रहने वाली बूँदों से लेकर आँखों में रहने वाली बूँदों तक.. सबको इस एक पोस्ट में लयबद्ध किया है.. इन पंक्तियों की बारिश में आप थोड़ी देर भीग सकते हैं..
जो लोग इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर रहते हैं.. वो दिन भर इंसान के भाग्य पर आश्चर्य करते होंगे कि रहने के लिए ऐसा.. नीले कंचे जैसा.. ग्रह मिला है.. और उन्हें इस बात पर भी हैरानी होती होगी कि कोई खुद को कितना भी बड़ा समझे.. है तो वो एक बिंदु ही… बल्कि ये पूरा ग्रह ही एक बिंदु है.. सौरमंडल, आकाशगंगा और ब्रह्माण्ड के विस्तार में।
हर प्रयास की एक उम्र होती है.. फिर उसकी प्रासंगिकता खोई हुई सी लगती है.. सच ये है कि सारे प्रयास हमेशा जीवित नहीं रह सकते.. उन्हें काल खंड की कँटीली तारों को पार करने की इजाज़त नहीं होती.. प्रयासों को अमरत्व का वरदान नहीं होता… अगर सारे प्रयास.. सदा के लिए जीवित रहने लगें.. तो शायद उनकी हैसियत खत्म हो जाएगी.. हालाँकि हमारे यहां कहते हैं कि कोई प्रयास बेकार नहीं जाता… इसलिए आपकी हर कोशिश की ख़ुशबू आ जाती है और दूर खड़ा कोई अनजान व्यक्ति भी आपको पहचान लेता है… प्रयास की नदी.. पहचान वाले समुद्र में ही मिलती है
एक पुल है…… जो धीरे धीरे बना है…. कई वर्षों में…. कई हज़ार फ़ीट की ऊँचाई पर… अनुभव और वात्सल्य के कई ट्रक… गुजर कर उस पर से… आते हैं मुझ तक
कई बार लगता है कि अनुभव एक व्यक्ति से दूसरे में किसी जीवाणु की तरह यात्रा करता है.. और इस क्रम में कुछ इंसान.. दूसरे इंसानों के लिए एक सैंपल … Continue reading Experience of a Sample Human 🦠 : सैंपल मनुष्य का अनुभव
आपदा, महामारी, संक्रमण के असर.. अजीब होते हैं.. जैसे कोई व्यंजन बन रहा हो.. और उसे बनाने की रेसिपी में लिखा हो… “समाज के छिलके-कूड़ा-करकट माने जाने वाले गरीब-भूखे-मजबूर-बेरोज़गार पहले … Continue reading Wireless एकांत में हम-तुम कैसे है ?
अंदर तो हमेशा ही पहनकर रखते थे ये मुखौटे अब बाहर आ गये हैं अपनी पहचान ढूँढते घूम रहे लोगों में आजकल मुँह ढकने की होड़ है अब सब एक … Continue reading Masks 🦠 : मुखौटे
हर मुलाक़ात संक्रमित है
माथे को सहलाने वाला हाथ संक्रमित है
On Women’s Day Weekend, I want to share some of my poems on Womanhood. These Poems talk about Present, They have essence of Past and trajectories of Future. माँ, पत्नी, … Continue reading W-Energy : 👩🏻 ‘शक्ति’
हिंसा में आंसू तो होते हैं.. पर कई बार गहरा कटाक्ष भी होता है.. संताप होता है और क्रूरता का समारोह भी होता है.. हिंसा के तीन दिवसीय आयोजन के … Continue reading Half Burnt Notebook : आधी जली हुई नोटबुक
मेरे पिता अब सत्तर वर्ष के हो रहे हैं.. लेकिन उनका कंठ आधी उम्र का है.. सबूत माँगना फ़ैशन में है.. तो इस बात का सबूत वीडियो के रूप में … Continue reading अपनी ही विरासत में पिता का आना देखा.. गाना देखा
ज़हर आजकल चलन में है, बिक रहा है.. और सफल होने का सिद्ध फ़ॉर्मूला भी है। अगर आप ज़हर उगलते हैं, ज़हर लिखते हैं, ज़हर के व्यापारी हैं, ज़हर को चटपटे फ़्लेवर में बेचने वाले दबंग दुकानदार हैं.. तो लोग आपको पहचानने लगेंगे..
गणतंत्र को देखने के कई तरीक़े हैं.. कई लेंस हैं.. कई फ़िल्टर हैं.. 1950 में गणतंत्र दिवस कैसे मनाया गया था ? इस संदर्भ में British Pathe का पौने चार … Continue reading Poetic Parade : गणतंत्र दिवस की काव्य परेड
रविवार को सूर्य से ऐसी किरणें निकलती हैं जो आपको आलसी…बहुत आलसी बना देती हैं। ये वैज्ञानिक तथ्य नहीं है, ये रविवार को सूर्य और छुट्टी का दिन मानने के फलस्वरूप उपजा अनुभव है।
ये सूर्य की सुनहरी लकीरों का गणित है
जिसे सिर्फ मैं और तुम समझते हैं