जब दोस्ती Interstellar हो जाती है, यानी सितारों के पार चली जाती है, तो फिर हमें मन की टाइम मशीन का सहारा लेना होता है, और जिन्हें हम चाहते हैं उन तक पहुंचना होता है। यक्ष ने युद्धिष्ठिर से पूछा था कि हवा से भी तेज़ गति किसकी है,
इस पर युद्धिष्ठिर ने उत्तर दिया – “सबसे तेज़ गति मन की है…
मुझे तो मन में टाइम मशीन वाले सारे गुण नज़र आते हैं।
रोज़ ही कई ऐसे मोड़ आते हैं जब मन वाली टाइम मशीन की ज़रूरत होती है। वो मित्र/परिस्थितियां/मौके जो हमसे छिन गए.. उन तक पहुंचने और उन्हें दस्तक देने के लिए समय को पिघलाकर अपनी दिशा में मोड़ना होता है। इसका सूत्र वैज्ञानिक तो पता नहीं कब ढूंढ़ पाएंगे, लेकिन कल्पनाशील लोग इस सूत्र को बार बार छू लेते हैं। आगे जो लिखा है उसमें एक खोए हुए मित्र तक पहुंचने के सूत्र हैं, और ढेर सारा भारहीन तत्व है, जिसे पंक्तियों के बीच महसूस किया जा सकता हैं

जैसे हर सुबह शहर नया जन्म लेता है
ठीक उसी तरह क्या उसने भी कोई और रूप, कोई नया आकार ले लिया होगा ?
उसे चाहने वाले बहुत दिनों तक उसका आसमान नोचते रहे,
वो हिंसा उस तक पहुँची होगी क्या ?
और जो उसके बहाने अपने ही कोने ढूँढकर सुबकते रहे,
उनकी सीलन चौथे आयाम में घुसी होगी क्या ?
बीते हुए समय को ताप से पिघलाकर मोड़ने का विज्ञान
हमें यादों में मिला, बार बार दोहराई गई बातों में मिला
सूने सूने बच्चों की आँखों में मिला
दोस्ती की क़समों में, स्वार्थ की गाँठों में मिला
गुरुत्वाकर्षण को पार कर हमेशा के लिए खिंच चुकीं,
कुछ भारहीन मुस्कानों में मिला।
