
दुनिया में जिन लोगों को पानी सहजता से उपलब्ध है, उन्हें पानी विशेष नहीं लगता… बर्फ़ विशेष लगती है,
क्योंकि बर्फ एक पल है, अगले पल नहीं, उसे पानी बन जाना है.. वो थोड़ी देर के लिए है, उसका समय कीमती है, उसे पाना है तो उसी पल में पाना होगा.. इस तरह पानी सामान्य हुआ और बर्फ विशेष हुई !
ख़ैर… Mark Twain ने 1895 में लिखा था कि अमेरिकियों की एक बड़ी खूबी ये है कि वो बर्फीले पानी के प्रति राष्ट्रीय तौर पर समर्पित हैं। बर्फ का तरह तरह से इस्तेमाल करना, उसका उत्सव मनाना…ये अमेरिकियों को खूब आता है और भाता है
बर्फ़ में विशिष्टता का ये जो भाव है उसे लग्ज़री में तब्दील करने वाले Ice Champions बाज़ार में आ चुके हैं। अब पूँजीवादी अमेरिका ने बर्फ़ को भी एक लग्ज़री वस्तु के रूप में परिभाषित करना शुरू कर दिया है।
डिज़ाइनर बर्फ़.. मुख्यधारा में आकर पिघल रही है।
चुनी हुई कंपनियों के Logo से सुसज्जित 14 अमेरिकी डॉलर (₹1200) की क़ीमत वाले Ice Cubes आ चुके हैं।विशेष मौक़ों के लिए तैयार किए जाने वाले Ice Cubes में फल, फूल, पंखुड़ी, चटक रंग कुछ भी हो सकता है, या कोई भी दुर्लभ वस्तु पानी में जमाकर, क़ीमती बनाकर पेश की जा सकती है
वैसे मुझे तो ये एक कटाक्ष लगता है कि किसी निर्जीव वस्तु को जमाने से उसके दाम/महत्व बढ़ जाए…
डाल पर खिले हुए ज़िंदा फूल का कोई दाम नहीं, सही समय पर तोड़ने से दाम थोड़ा बढ़ेगा और बर्फ में जमा दिया तो ये डिज़ाइनर बर्फ हो जाएगी, जिसका एक एक टुकड़ा 1200 रुपये में बिकेगा…
बर्फ़ में जम चुके..मृतक फूल की अदृश्य तकलीफ़.. डिज़ाइनर है.. जो बिक तो रही है.. पर कुछ कह नहीं रही.. फ़ूल तकलीफ़ में होता है, तो भी हमें हंसता हुआ ही दिखता है.. कला की क़ीमत, दर्द से बढ़ती है
अमेरिका में डिज़ाइनर बर्फ़ का ट्रेंड शुरू होना कोई आश्चर्य नहीं है। अमेरिका में रेफ्रिजरेशन की तकनीक का इतिहास लिखने वाले ये कहते हैं कि अमेरिका में दुनिया का सबसे पुराना बर्फ उद्योग है, जो 1806 में शुरू हुआ था। अब कुलिनरी फ़ैशन वाले घुस गए हैं, तो कुछ तो ऐसा बनाएँगे… जिसके पीछे डिज़ाइनर शब्द जोड़ा जा सके।
एक बात और…
पूँजीवाद का हर प्रोडक्ट तीसरी दुनिया और उसके प्रथम नागरिकों यानी ग़रीबों को देखता है.. और मुस्कुराता है..
कहीं तो पानी के लिए त्राहि माम है… तो कहीं बर्फ़ है, आनंद से लबालब हमाम है.. और उसमें सब सूट बूट पहनकर नहा रहे हैं 😂