
गांव थे…चल पड़े…नगर बने
सिर उठाया, महानगर बने,
फिर उनकी सीमाओं पर
महानगरों के विकल्प बने
विकल्प भी छोटे पड़े, तो राजमार्ग बने,
और बेहिसाब बने…
अब हम घर से ज़्यादा, सफ़र में रहते हैं
और इस सफ़र को नौकरी कहते हैं

Nirvana of Infotainment
गांव थे…चल पड़े…नगर बने
सिर उठाया, महानगर बने,
फिर उनकी सीमाओं पर
महानगरों के विकल्प बने
विकल्प भी छोटे पड़े, तो राजमार्ग बने,
और बेहिसाब बने…
अब हम घर से ज़्यादा, सफ़र में रहते हैं
और इस सफ़र को नौकरी कहते हैं