साँप-सीढ़ी… पाप-पुण्य

सतह पर अपराधी की दशा और गहराई में साँप सीढ़ी का पाप पुण्य वाला बोध !

ये लेख लिखने का ख्याल तब आया जब उत्तर प्रदेश का गैंगस्टर क़ानून के निशाने पर आ गया

जिस गैंगस्टर अतीक अहमद के चेहरे पर मूँछों के ताव और चेहरे के भाव से 10:10 बजते थे
उसके चेहरे पर उम्रक़ैद की सज़ा मिलने के बाद 7:20 बज रहे थे
मूँछें और चेहरा दोनों लटके हुए थे, रो रहा था

दरअसल #AtiqAhmed को वक्त की साँप सीढ़ी ने डँस लिया 🐍🪜
44 साल से अतीक पर केस हो रहे थे, अब तक कुल 101 केस हो चुके हैं, पहली बार सज़ा मिली है।अतीक जैसे गैंगस्टर को उसका अपराध, उसका पाप ही डँसता है

💡 वैसे साँप-सीढ़ी में साँप 🐍 पाप का ही प्रतीक माना गया है,

माना जाता है कि साँप-सीढ़ी के खेल का आविष्कार प्राचीन भारत में हुआ और बाद में इसके कई रूप विकसित होते चले गए। इनमें से 13वीं शताब्दी में विकसित हुए खेल को मोक्ष पट्टम कहा जाता है। ये एक ऐसा खेल था जिसमें कम उम्र से ही पाप पुण्य का अंतर खेल खेल में सिखा दिया जाता था।

आज सांप सीढ़ी का खेल 100 खानों में बंटा होता है लेकिन मोक्ष पट्टम के मूल स्वरुप में 81 खाने थे जो बाद में बढ़कर 132 तक पहुँच गए थे। इसमें पहला खाना जन्म का होता था और आख़िरी खाना मोक्ष का

साँप-सीढ़ी के खेल में साँप को पाप का और रस्सी या सीढ़ी को पुण्य का प्रतीक माना जाता था। अलग अलग साँप अलग अलग तरह के पापों के प्रतीक माने गए। और अलग अलग सीढ़ियों को पुण्य का प्रतीक और मोक्ष की तरफ़ बढ़ने का साधन माना गया। इसकी जानकारी बाक़ायदा लिखी होती थी

आज किसी से मोक्ष की बात करो तो उसे मृत्यु या इस संसार के पार जाने से जोड़ता है.. लेकिन मोक्ष, साधन की शुद्धता के साथ किए गए कर्म से भी जुड़ा है

अगली बार साँप सीढ़ी खेलते हुए याद रखिएगा 😇