
वो सुरक्षा के लिए बाहर की लाइट ऑन करता है
रोशनी झप्प से अंधेरा ख़त्म कर देती है
और चिड़िया की नींद असुरक्षित हो जाती है
उड़ती हुई चिड़िया
आजकल जगमगाते शहरों में नींद ढूँढ रही है
सहमे हुए महानगरों ने कैमरों का जाल भी बिछाया है
हम सबके हिस्से का वो अंधेरा मिटाया है
जो विश्राम और अल्प विराम के लिए अक्सर ज़रूरी होता है
कभी कभी लगता है कि सब सोख लेने वाले शालीन अंधेरे का कोई शाप है…
कि अब हर वक्त जगमगाते घोंसले में आप हैं
वैसे तो ज़्यादा रोशनी को विकास का प्रतीक माना जाता है, लेकिन मुझे गहरी होती रात में अतिरिक्त रोशनी फूहड़ लगती है, ये थोड़ी एक्स्ट्रा रोशनी हमारे अंदर की असुरक्षा को महानगर के चप्पे चप्पे में प्रसारित कर रही होती है। जो शहर कभी नहीं सोता, वो किसी का नहीं होता, उसमें अपनापन नहीं होता। बेतहाशा विकास की क़ीमत है, उजाले की अति, उजाले का शाप। रात अब रात नहीं रह गई, इसलिए नींद भी कच्ची है और सपने भी कभी पक नहीं पाते, कच्चे ही टूट जाते हैं। विज्ञान भी रोशनी को नींद के खिलाफ मानता आया है। ये बात लिखते हुए पहले चिड़िया की तरह सोचा, वो कैसे सो पाती होगी, कैसे इसकी आदत डाली होगी, फिर लगा कि इस मामले में इंसान और चिड़िया के बीच ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है