
किसी पुराने इलाके की तंग गलियों में जाकर ऊपर देखिए जीवन का narrow angle view मिलेगा। भारत में अधिकांश लोग इन मोहल्लों में रहते हैं। यहां किसी पर आसमान टूटकर नहीं गिरता.. क्योंकि बीच में उलझी हुई तारें हैं.. यहां हर मुसीबत छोटी है.. साझे संघर्ष बड़े हैं.. सबका आसमान उलझी तारों पर टिका है
कई बार बच्चा आड़ी तिरछी लकीरें खींचकर कागज़ बर्बाद कर दे तो भी प्यार आता है..
और कागज़ सँभालकर रखा जाता है.. हम सबने ऐसे मोहल्ले मन में सँभालकर रखे हैं..
तस्वीर दिल्ली के लक्ष्मी नगर की है.. जहां हम वर्षों किराये के घरों में रहे.. आज भी चाट पकौड़ी के लिए कई बार चले जाते हैं… अंदर पार्किंग की जगह नहीं है इसलिए कहीं गाड़ी खड़ी करके रिक्शा करते हैं…

और रिक्शा करते हैं तो गोलगप्पों के पानी के साथ ढेर सारी ग्लानि भी घर ले जाते हैं.. थोड़ी देर सोचते हैं कि वो अनाम बुज़ुर्ग आदमी किस तरह संपन्न वर्ग को लादकर अपनी आजीविका खींच रहा है… दुनिया में कितना ही ऑटोमेशन हो जाए… कितना ही AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस)आ जाए.. चाहे सारे अमेरिकी सुपरहीरो अनगिनत बार संसार को बचा लें… पैडल पर अपनी कमाई जितनी ताकत जोड़कर… ज़ोर लगाने वाले इस व्यक्ति का जीवन नहीं बदलता… आप इस ग्लानि के कारण अपनी तरफ से थोड़े ज़्यादा पैसे दे देते हैं.. और वो आदमी… उलझी तारों के बीच से ही आसमान देखकर शुक्रिया कह देता है..
एक आदमी थोड़ा सा डिस्काउंट छोड़ दे.. तो दूसरे आदमी का बुझा हुआ चेहरा बल्ब की तरह जल जाता है.. दोनों थोड़ी थोड़ी Extra खुशी लेकर घर जाते हैं.. संसार ऐसी भावनाओं के ईंधन से ही चल रहा है…