खुद को ध्यान से देखिए, पता चलेगा कि आड़ी तिरछी घुमावदार लकीरें, मिल-जुलकर आपमें रहती हैं, आपको बनाती हैं

घूमती.. लचीली.. अधूरी लकीरों में सधा है
…अस्तित्व मेरा.. और तुम्हारा भी
प्राणवायु भी एक लकीर है
जिसे पकड़कर सब झूल रहे हैं.. इस संसार में
और उसे साधना, कोण देना..
जीवन की ज्यामिति* (geometry)
मेरे इंटरनेट स्तंभ ‘सिद्धार्थ की दूरबीन’ 🔭 से