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गड़ब…
चुपचाप..घूँट पानी का उतरता है गले से…
यूँ जैसे पवित्र नदी निगलती है शिशु को..
और बुलबुलों की रसीद देती है..
राजा सिर्फ उस दिशा में देखता है
ऐतिहासिक मूर्ति की तरह जमा हुआ..
अंदर ही अंदर लौ सा फड़कता..
और उसी पल बुझा हुआ.. शिला की तरह निर्जीव
कई बार.. कुछ डूब जाने दिया जाता है..
हो जाने दिया जाता है..
हामी में.. रज़ामंदी में.. मौन में.. बहुत ढूँढो तो भी नहीं मिलता विष
टेस्ट नेगेटिव आता है.. फिर मस्त घूमते हैं
सबके सब…
हम सब…
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© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree