मन में मिसाइल चलाते हैं… नींद में निशाने लगाते हैं.. चाबी किसी और के पास होती है.. कुंडी पर लटके रह जाते हैं..
कौन ?
वही… ज़ंग खाए ताले… सुरक्षित जीवन वाले
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बारूद जलता है.. हम खुश होते हैं
मिसाइल उठती है पड़ोस के दुश्मन की तरफ…
और चोट सोखने वाले हल्दी के दूध के हर घूंट में.. वीर रस आने लगता है..
कोई किसी को ललकारता है…
नामोनिशान मिटाने की प्रतिज्ञा करता है
और अंदर का योद्धा… तोंद संभालते हुए.. डकार लेकर उठ खड़ा होता है..
उद्घोष करता है.. हम भी तैयार हैं..
कोई आग कभी नहीं जला पाती.. इन हाथों को
खीरा.. टमाटर.. सलाद काटते हुए
बार बार करीब से गुज़रती है चाकू
उंगलियां हर बार बच जाती है..
ये सुरक्षित जीवन है
रंगहीन हो.. गंधहीन हो.. तो भी..
सुविधा की मदिरा से नाक तक भरा है..
और वो मदिरा.. हर बात पर छलकती है
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree