रोशनी देने वाला लेटरबॉक्स 📮

9 मार्च 1858.. हमारे पहले स्वतंत्रता संग्राम के कुछ महीने बाद का दौर था.. भारत की विषमताओं से सात समंदर दूर.. जहां तक चिट्ठी की पहुंच असंभव लगती थी.. वहां अमेरिका के फिलाडेल्फिया में अल्बर्ट पॉट्स नामक व्यक्ति ने एक पेटेंट करवाया था… एक लेटरबॉक्स का पेटेंट.. उसमें चिट्ठी डालने की व्यवस्था थी.. और उससे रोशनी निकलने की व्यवस्था थी.. एक ऐसा लैंप पोस्ट जो रोशनी देता था और आसपास गुज़रते लोगों को याद दिलाता था कि उन्हें किसी को याद करते हुए कुछ लिखकर भेजना चाहिए..

तब चिट्ठियाँ रोशनी की गति से तो नहीं जाती थीं.. लेकिन अपने साथ रोशनी लेकर जाती थीं.. थोड़ा सा उजाला.. जो किसी चेहरे पर किसी की चिट्ठी को पढ़ते हुए दिखाई देता है.. वो हिफ़ाज़त से पहुंच जाता था.. लिखे हुए पते पर.. या उससे भी आगे चलकर स्मृतियों में

इस पेटेंट में चिट्ठियों के भविष्य के संकेत भी शायद लिखे थे.. वर्ना रोशनी का स्रोत, लेटर बॉक्स के साथ क्यों होता… अब रोशनी की गति से विचार इधर से उधर धरती के दूसरे कोने में पहुंच जाते हैं.. और चिट्ठियाँ गायब हो चुकी हैं.. घर पर सामान की डिलिवरी होती है… चिठ्ठियों की नहीं… हो सकता है कोई सर्विस शुरू हो जाए भविष्य में जब लोग ऑर्डर देकर भावुक कर देने वाली चिट्ठियाँ लिखवाया करेंगे। विज्ञापनों में लिखा होगा, हमारे यहाँ AI / ChatGPT से नहीं, जीते जागते भावनाओं से भरे संवेदनशील इंसानों से चिट्ठी लिखवाई जाती है

चिट्ठियों की आवाजाही से जुड़े इस रोशनी वाले आविष्कार पर 2021 में लिखा था
तब चारों तरफ़ कोविड का भय व शोक था। अपनत्व वाली चिट्ठियों की… और रोशनी की ज़रूरत बहुत ज़्यादा थी, आज भी है, हमेशा रहेगी। ओरिजनल वेब लिंक कमेंट बॉक्स में