पिछले हफ़्ते आपसे कहा था.. बादल की बाँहों में धूप पिघलती रही.. शहर ने आज देखा एक प्रेम प्रसंग…
तब से बादल और धूप के बीच जो कुछ चल रहा है वो आप भी देखिए…

“ लुट गया भंवरा रिस गए फूल नहाया रंगों में मैं सबको भूल ज़रा पकड़ो तो आंखों के ऊपर से फिसलता मैं बादल 🌤 ”
“ बड़े बड़े ख़्वाब छोटी-छोटी हसरतें आशिक़ निगाहें सबसे बड़ी चोर बिलकुल तितली सी.. मैं धूप ☀️ ”
“ सुनो बादल ☁️ इंतज़ार है कि तुम आकर इस रूह में अपना घर बसा लो अपनी निशानियाँ बना लो कुछ कोने चुनो जहां तुम हंसोगे कुछ और कोने चुनो जहां तुम बैठकर रो सको और वो कोना भी जहां तुम डूब सको गहरी नींद में.. लापरवाह होकर इंतज़ार रहेगा आना ज़रूर तुम्हारी धूप ☀️ ”
“ धूप ☀️ ... तुम्हारी पनाह का इंतज़ार रहेगा कुछ कोनों का वादा किया था तुमने जहां कुछ मुस्कान कुछ आंसू हों कुछ ख़्वाब कुछ तक़रारें हों बस उन्हीं में जाना है वहीं रहना है थोड़ा स्याह हूँ.. पानी लेकर चलता हूँ करीब आता हूँ तो उमस बढ़ती है ”
“ सुन बादल ☁️ .. तेरा हाथ,मेरी रोशनी की लकीरें हमारे साथ की थोड़ी सी भाप चल फूंक कर उड़ा दें ये वादियां वो झोपड़े मोमबत्तियों से पेड़ छुरियों से तेज़ निगाहें अंधेरा और धुआं बेशुमार इतने करीने से सब रखा है कि छेड़ दो तो साज़ है छोड़ दो तो याद है ”
🌤 जारी है … ❤️ 😇