
आंख का कोई विकल्प नहीं था मनुष्य के पास… देखने की शक्ति और जो देखा उसे निचोड़कर दिमाग की मदद से दृष्टिकोण बनाने की अद्भुत शक्ति आँखों में ही है.. और ये बात इंसान को हमेशा आँखों की नक़ल बनाने के लिए प्रेरित करती रही। कैमरे का आविष्कार इसी का नतीजा है। शुरुआत में छवियाँ सहेजने वाला कैमरा.. बाद में चलते हुए दृश्य सहेजने लगा।
छवियों में रुका हुआ पल होता है.. फोटो देखने वालों के दिमाग को.. आज़ादी मिलती है.. संभावनाएँ गढ़ने की.. लेकिन वीडियो ने तो जैसे आँखों की उँगली पकड़कर.. दृष्टि को पहले से तय रास्तों पर चलाना शुरू कर दिया है। इसलिए सोच, नज़रिया.. या जिसे हम दृष्टिकोण कहते हैं.. वो सिकुड़ गया है.. इस वीडियो युग में आसपास आप देखेंगे.. कि नज़रिए तंग हैं.. और किसी न किसी वीडियो की डोर से बंधे हुए हैं..
अब कैमरा सिर्फ छवियाँ सहेजने का साधन नहीं.. एक शस्त्र है.. जिसका वार अचूक है..और घायल होने वालों में हम सब हैं.. क्योंकि अब हर हाथ में कैमरा है.. कैमरे के सामने आते ही लोग अभिनय शुरू कर देते हैं.. ताकि अपने व्यक्तित्व के सिर्फ एक चमचमाते हुए टुकड़े को शाही टुकड़ा बनाकर पेश किया जा सके.. हर कुंठा पर मुस्कान का फ़ेस पैक या फ़िल्टर लगाकर दिखाया जा सके.. और हर कमज़ोरी को विजय बताकर रिकॉर्ड कर लिया जाए.. फैला दिया जाए.. लोगों के दिमाग में अमिट स्याही से लिख दिया जाए.. ताकि देखने वाले को ये लगे कि जो सामने एक नज़र में दिख रहा है वही सत्य है.. और सब कुछ सुंदर है..
कैमरे की इस शक्ति पर पिछले काफी समय से सोच रहा था और छोटे छोटे ख्यालों को लिख रहा था… अब लगता है कि इस पूरे प्रोजेक्ट को आपसे शेयर कर दूँ.. जिस स्क्रीन पर आप इसे पढ़ रहे होंगे.. संभव है उसके साथ भी कोई कैमरा हो…
कैमरे वाला लोकतंत्र
बटन दबाया..
लाल रंग के बिंदु की धक धक शुरू हो गई
हर हाथ में कैमरा था..
क्योंकि आँख की..
या देखने की ज़रूरत नहीं थी
चलते-फिरते कैमरे
दुनिया के सारे दृश्य दौड़कर आते हैं
और ज़मीन के आख़िरी सिरे पर पहुँचकर
छलांग लगा देते हैं
आँखों की गहरी खाई में
हम तुम चलते फिरते कैमरे हैं
ज़िंदगी हर पल इसके लेंस की गहराई में कूद रही है
कैमरा और वीडियो प्रदूषण
सब दिखा रहे हैं कुछ ना कुछ
देखने वालों की आबादी घट रही है
आँखें कड़वाने लगी हैं
दृश्यों में ठूँसकर भरी ख़ूबसूरती या मिर्च से
ज़ुबान पर भी कण हैं किसी वीडियो के
जो आसानी से दिखाई नहीं देते
कैमरा एक बाहुबली
कैमरा नहीं रुक रहा..
उसे पकड़ने वाली भुजाएँ हांफ़ रही हैं
वस्त्र खींचते खींचते
कैमरे वाली भूख
ना जाने किस किस की राख से…
किस किस ने बर्तन चमकाए हैं…
दांत भी चमकाए हैं..
न जाने किस किस का खून पीने के बाद
चमकते हुए दांतों के बीच से
चोर जैसी ज़ुबान झांक रही है
मुँह में पानी आ चुका है
कैमरे लग गये हैं शायद
कैमरे वाले घाव
मेकअप लगाने के बावजूद
उसे कैमरे से चोट लग जाती थी
कैमरे से कुछ अदृश्य सा निकलता
और फिर चेहरा झुलस जाता था
फोड़े निकल आते थे
रिसते थे घाव कई-कई दिन
इस दौरान ख़बरें मरती रहती थीं
शव यात्राएँ धूम-धाम से निकलती रहती थीं
कैमरे वाला नशा
झूम रहा है वो कमरा
जिसमें घुसते ही
हर आँख कैमरे की तरह ऑन हो जाती है
और फिर किसी न किसी को
आपका कोई न कोई टुकड़ा चाहिए होता है
अपने गिलास में डालकर
उसे ध्रुव सा ठंडा करने के लिए
आनंद के घूँट लेने के लिए
किसी के टुकड़े.. किसी के नशे का सामान बनते हैं