
ध्वनि
सधी चाल वाले बेदाग़ लोग
कीचड़ पर, लाश पर,
मिट्टी और कोयले के ढेर पर..
पैर रखते हुए…
कदम कदम चलता जाता था…
उसके सफ़ेद वस्त्र पर
एक दाग नहीं लगा कभी…
ऐसा बेदाग़ जीवन…
स्वच्छता की पराकाष्ठा लगता है दूर से ..
और किसी भी चीज़ की पराकाष्ठा..
बीमारी लगती है.. पास से देखने पर…
प्रतिध्वनि
दौड़ते भागते बच्चे
जो धूल..
कीचड़ में सने हैं..
प्रेम और एसिड से जले हैं..
जिन पर जीवन के निशान पड़े हैं..
जो दौड़ते भागते बच्चे हैं..
वही लगते सच्चे हैं
इस रचना में एक हिस्सा ध्वनि और दूसरा प्रतिध्वनि है.. दोनों एक दूसरे से टकरा रही हैं…. जो बेदाग़ बड़े हैं.. सधी चाल से सब हासिल करते चले हैं… उनकी तरकीबों पर बच्चों के हंसी ठट्ठे भारी पड़ते हैं….
अंबर में चमकते तारों की तरह चमकते हैं आपके शब्द।
सर, आपके शब्द ज़िन्दगी के हर पहलू को बखूबी समझा देते हैं, आपकी कलम का कोई मुक़ाबला नहीं कर सकता 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
प्रेम और एसिड से भरे …..वाह सर् ग्रेट
बच्चे बहुत बड़े हैं…
बड़े बहुत बच्चे हैं…
#प्रतिध्वनि