Garden of Sorrows : दुख उसका श्रृंगार थे

कभी हाथों में कंगन की तरह पहनती
कभी गले में उजले हार की तरह
आँखों में काजल ऐसा
जैसे गीली मुलायम मिट्टी वाली भूमि पर सड़क बन रही हो..
गर्म, चिपचिपा कोलतार… टहलती हुई हवा से मिलकर सख्त हो जा रहा हो..

कमरबंद प्रेमी की पकड़ सा..
पायल.. उस ज़ंजीर सी जो रसोईघर से बंधी हुई है..

दिन भर के दुख उसका श्रृंगार थे..
वो सजती थी इन्हीं से…
और देर रात में कविताएँ लिखा करती थी…
पढ़ने वालों को मैंने उन्हीं कविताओं में भीगते.. डूबते.. संवरते..
अपनी आत्मा का श्रृंगार करते देखा है..
दुख को सुंदर बनाने के लिए
बहुत हिम्मत चाहिए