
हम सब अंतरिक्ष यात्री तो हैं नहीं लेकिन जो भी गिनती के लोग अंतरिक्ष यात्री रहे हैं उन्होंने ये सच बहुत पहले जान लिया था कि हमारा अस्तित्व एक बिंदु से ज़्यादा कुछ भी नहीं है.. सादे क़ागज़ पर किसी पेन से लगाए गए डॉट जितनी हैसियत है…. जो लोग इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर रहते हैं.. वो दिन भर इंसान के भाग्य पर आश्चर्य करते होंगे कि रहने के लिए ऐसा.. नीले कंचे जैसा.. ग्रह मिला है.. और उन्हें इस बात पर भी हैरानी होती होगी कि कोई खुद को कितना भी बड़ा समझे.. है तो वो एक बिंदु ही… बल्कि ये पूरा ग्रह ही एक बिंदु है.. सौरमंडल, आकाशगंगा और ब्रह्माण्ड के विस्तार में। अंतरिक्ष में जाना कितना आध्यात्मिक कर्म है ! किसी ऋषि जैसा अनुभव..
वैसे इस बोध के लिए अंतरिक्ष यात्री बनने या वहां जाने की ज़रूरत नहीं है..
युद्धिष्ठिर ने यक्ष से कहा था – मन सबसे तेज़ चलता है
अत: मन चाहे तो स्पेस स्टेशन की तरह ये अनुभव रिकॉर्ड कर लेगा
सादे कागज़ पर बना कॉमा आगे कुछ और जोड़ने की गुंजाइश दिखाता है, और फुलस्टॉप में अस्तित्व और मृत्यु का बोध है।
दुनिया के सिर्फ़ एक बिंदु पर
हमारी दुनिया सिमटी हुई है
क़लम के आख़िरी बिंदु पर
कुछ कहानियाँ अटकी हुई हैं
ज़ुबान के आख़िरी बिंदु पर
कुछ बातें रुकी हुई हैं
ज़िंदगी के बहाव में
ऐसे कितने फ़ुल स्टॉप हैं ?
हर मौक़ा… एक कॉमा
हर मौत… एक फ़ुल स्टॉप
कलम अपने हाथ में है ?
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree