वायरस और व्यवस्था 🦠 ग़रीबों/ज़रूरतमंदों को चारों तरफ से घेर लेते हैं
#ग़रीबीवायरस #Corona से भी भयंकर है
छोटी झुग्गी में अपने बड़े परिवार के साथ सटकर रहने वाले लोग
वो पतली गलियाँ जहां लोगों के अस्तित्व टकराते रहते हैं
वहां सामाजिक दूरियाँ कैसे लागू होंगी ?
भारत में तमाम बुज़ुर्गों को अपनी आख़िरी साँस तक कमाते रहना पड़ता है
65 साल के बहुत से बुज़ुर्ग जो दैनिक मज़दूरी करते हैं उनके सामने दो विकल्प हैं
वायरस या भूख…
लड़ाई दोहरी हो गई और आदमी भूखा नहीं रह सकता
जो लोग वायरस के ख़तरे के बावजूद अपना काम करेंगे / कर पाएंगे उनका अभिवादन किया जाएगा… अच्छी बात है.. होना चाहिए
पर उन लोगों का क्या जिनके पास विकल्प ही नहीं है
जो रोज़ अपनी गिरवी रखी ज़िंदगी को किसी दाता से छुड़ाते हैं
जाड़े के दिनों में जब ठिठुरती हुई कामवाली, जूठे बर्तनों तक नहीं पहुंच पाती, तो धूप में आराम कुर्सी पर बैठे लोग गिन गिनकर नागे काट लेते हैं
वायरस से डरा हुआ समाज ऐसे हादसों को रोक लेगा ?
वाक़ई पैसे नहीं काटेगा ?