Intoxication : ज़हर लिखा है.. खूब बिका है

वाह !
क्या ज़हर लिखा है
क्या खूब बिका है
तुम जिसे ताप रहे हो
वो किसकी चिता है ?

When Poison Prevails.. Everyone Looks at the society through a cob web

ज़हर में आकर्षण होता है.. प्रकृति में बहुत से फूल-पौधे पाए जाते हैं.. जो आकर्षक होते हैं.. अपने शिकार को अपनी तरफ़ खींचते हैं और फिर उसे अपने ज़हर में समाहित कर लेते हैं।

ज़हर आजकल चलन में है, बिक रहा है.. और सफल होने का सिद्ध फ़ॉर्मूला भी है। अगर आप ज़हर उगलते हैं, ज़हर लिखते हैं, ज़हर के व्यापारी हैं, ज़हर को चटपटे फ़्लेवर में बेचने वाले दबंग दुकानदार हैं.. तो लोग आपको पहचानने लगेंगे.. जिसका जितना ज़हर आपसे मेल खाएगा.. वो उसी हिसाब से आपका अनुयायी बन सकता है। ये ज़हर 21वीं सदी के समाज का प्रतिमान न बन जाए.. इसी उम्मीद के साथ चार लाइनें लिखी हैं। जब ज़हर बिक रहा होता है.. तो कुछ न कुछ.. अच्छा.. मर रहा होता है.. और हम ये सोच लेते हैं कि ये तो फलां आदमी की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा या मजबूरी है.. सफलता के लिए तो ये करना पड़ता है.. वग़ैरह.. वग़ैरह। ऐसा करते हुए हम ज़हर को मौन स्वीकृति दे रहे होते हैं। और ज़हर एक सामान्य सी बात बन जाता है, फ़ैशन बन जाता है, आचार संहिता बन जाता है।

ये भी विस्मित करने वाली बात है कि जब हम निजी रूप से कोई बड़ा या छोटा.. अच्छा या बुरा काम करने चलते हैं, तो हमारी आकांक्षा यही होती है कि हमें ज़हरीले लोग न मिलें.. कोई बढ़िया व्यक्ति मिल जाए.. जो साथ दे

इस उम्मीद को बनाए रखने के लिए ज़हर का बोध होना ज़रूरी है।

© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree