सूर्य की किरणों की शक्ति बढ़ गई है.. सूर्य उत्तरायण हुए हैं… और असर ऐसा है कि इन शब्दों के पीछे भी देखिए धूप निकल आई है.. धुँध से छनकर आती हो तो भी.. धूप गुनगुना कर देती है.. बहुत कुछ !
सुख तेज़ी से डाउनलोड होने लगते हैं किरणों के साथ !

रविवार को सूर्य से ऐसी किरणें निकलती हैं जो आपको आलसी…बहुत आलसी बना देती हैं। ये वैज्ञानिक तथ्य नहीं है, ये रविवार को सूर्य और छुट्टी का दिन मानने के फलस्वरूप उपजा अनुभव है। वैसे रविवार हमेशा से छुट्टी का दिन नहीं था। कई पश्चिमी देशों में सूर्य को समर्पित दिवस पर ईश्वर की आराधना की जाती थी इसलिए वहां छुट्टी रहती थी.. ख़ासतौर पर ईसाइयों के लिए ये गिरिजाघर जाने का दिन था। लेकिन भारत में रविवार की छुट्टी नहीं होती थी.. ख़ासतौर पर ब्रिटिश शासन में तो भारतीयों को सातों दिन काम करना पड़ता था। इसे देखते हुए ज्योतिबा फुले के सत्यशोधक आन्दोलन के कार्यकर्ता और कामगार नेता नारायण मेघाजी लोखंडे ने मज़दूरों के हक़ में आवाज़ उठाई कि भारत के मज़दूर हफ्ते में सात दिन अपने परिवार के लिए काम करते है लेकिन समाज के लिए कुछ नहीं कर पाते। ऐसे में समाज की समस्याओं को सुलझाने के लिए भारतीय मज़दूरों को एक दिन की छुट्टी मिलनी चाहिए। इसके लिए उन्होंने अंग्रेज़ों के सामने सन 1881 में प्रस्ताव रखा। लेकिन अंग्रेज़ों ने इसे ख़ारिज कर दिया।

नारायण मेघाजी लोखंडे को रविवार की छुट्टी के लिए 1881 में आन्दोलन करना पड़ा। जो लगभग 8 साल चला। आखिरकार 1889 में रविवार की छुट्टी होने लगी पर सरकारों ने इसका औपचारिक एलान नहीं किया।एक RTI के जवाब में ये बात स्पष्ट हुई थी
वैसे रविवार में रवि.. यानी सूर्य निहित है.. ये सूर्य का दिन है… और सूर्य की किरणों में स्वास्थ्य के सूत्र हैं। भारत की परंपराओं में मान्यता है कि आयुर्वेद का निर्माण पाँचवें वेद के रूप में हुआ और आयुर्वेद को सूर्यदेव के हाथों में सौंप दिया गया.. जिसके बाद आयुर्वेद की स्वतंत्र संहिता बनी स्वास्थ्य के सूत्र जन-जन में फैले।

सूर्य और धूप ने काव्य/शायरी में अपना सम्मानजनक स्थान बनाया है। तमाम कवियों और शायरों ने तरह तरह से इसे लिखा है। मैंने पारंपरिक प्रतीकों से थोड़ा हटकर.. नयी परिस्थितियों में सूर्य की रोशनी/लालिमा, धूप और प्रेम भावनाओं को प्रक्षेपित किया है
Public Display of Affection : बादल-धूप का प्रेम प्रसंग
बादल की बांहों में धूप पिघलती रही
शहर ने आज देखा एक प्रेम प्रसंग
Back Benches : पंक्ति के अंत में सूर्य
बैक बेंच अकसर दूर होते हैं
सूरज की नज़र से दूर
धरती और गुरुत्व के आकर्षण से दूर
पंक्ति में सबसे पीछे..
वहाँ विराजते हैं नये विचार..
और बीच बीच में उठकर
धूप में पकड़म-पकड़ाई खेलते हैंफिर जब अंधेरा बढ़ता है
तो उसी रोशनी से
चाँद बनकर दमकते हैं
बैक बेंच पर बैठने वाले
Planet of Three Suns : तीन सूरज वाला ग्रह

तीन सूरज वाला ग्रह दिखा है
सोच रहा हूँ
जहां इतने सूरज हों
वहां रात होती होगी क्या ?
कितने चांद छिप गये होंगे वहां !
(ये कविता पृथ्वी से 340 प्रकाश वर्ष दूर एक ग्रह की स्थितियों पर आधारित है.. इस ग्रह का नाम है HD 131399Ab.. और वहां एक नहीं तीन सूरज दिखते हैं। इस ग्रह की खोज 2016 में हुई थी, तभी ये विचार भी आया था)
सुनहरी लकीरों का गणित | Mathematics of Light

पहाड़ों को जब
सूरज सहलाता है
धूप फिसल पड़ती है
और बनने लगती हैं
सुनहरी लकीरेंहम तुम
धूप के गोल सिक्के
लम्हों से उठाते हैं,
रोशनी के इन टुकड़ों को
चलते फिरते सोखते हैंतुम्हारी सुबह की तिकोनी धूप
मेरी दोपहर में रोशनी के चतुर्भुज
आपस में मिलकर चमकने लगते हैं
नये नये आकार बनने लगते हैंहमारे साझे शरीर की परिधि को पार करती
इन लकीरों का विस्तार ही हम दोनों की दुनिया है
ये सूर्य की सुनहरी लकीरों का गणित है
जिसे सिर्फ मैं और तुम समझते हैं
This poem is based on unseen mathematics of love. It focuses on glow of lovers. It’s like phosphorescence of love ! By the way in science phosphorescence means light emitted by a substance without being burnt. What a coincidence that Love is also like that.
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree