वो डॉन जिसकी छड़ी से डरता था मुंबई शहर !

इंदिरा गांधी के साथ करीम लाला की मुलाक़ात को लेकर विवाद हो गया तो अध्ययन शुरू किया। और इस दौरान करीम लाला के बारे में जो पढ़ा वो शेयर कर रहा हूँ

करीम ख़ान का नाम करीम लाला कैसे पड़ा ?

जिस गली में वह रहता था वहीं पर उसने जुए का एक अड्डा खोलने के साथ शुरुआत की, जिसे सभ्य ज़ुबान में ‘सोशल क्लब’ के नाम से जाना जाता था। क्लब में हर तरह के लोग आते थे – निहायत ग़रीब से लेकर उन लोगों तक जिनकी जेबें गरम होती थीं; जो लोग पैसा गँवाने की कूवत रखते थे और वे भी जो ज़िन्दा बने रहने के लिए जूझ रहे होते थे; दैनिक वेतनभोगी मज़दूर और मध्यवर्गीय। जो लोग भारी रक़म हार जाते वे राशन और दूसरी ज़रूरतों के लिए ख़ान या उसके आदमियों से पैसा उधार लेते। जब ख़ान ने ग़ौर किया कि यह एक ढर्रा–सा बन गया है, तो उसने इस पर पाबन्दी लगाने का फ़ैसला करते हुए उधार लेने वालों से कहा कि उन्हें उधार ली गई रक़म पर हर महीने की दस तारीख़ को सूद देना होगा। इससे कुछ लोग तो हतोत्साहित हुए लेकिन बाक़ी लोगों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा। ख़ान ने ग़ौर किया कि उसकी तिजोरी हर महीने दस गुना फलफूल रही है, और इससे उत्साहित होकर उसने साहूकार या लाला बनने का फ़ैसला किया। इस तरह करीम ख़ान को करीम ‘लाला’ के नाम से जाना जाने लगा।

कैसे करीम लाला का नाम मुंबई की ज़ुबान पर चढ़ गया ?

कुछ वक़्त बीतते–बीतते करीम लाला का जुआघर अपराध का अड्डा बन गया। मारपीट, झगड़े और ठगी रोज़मर्रा की घटनाएँ हो गईं। इनके चलते वह स्थानीय पुलिस के और फिर उसकी क्राइम ब्रांच के सम्पर्क में आया। लेकिन करीम लाला घूस के सहारे क़ानूनी झंझटों से बाहर बने रहने में कामयाब रहा। धीरे–धीरे उसका क़द और दबदबा बढ़ने लगा। कुछ लोग उसका ज़िक्र करीम दादा जैसी बड़बोली शब्दावली में करने लगे। पठान, जिन्होंने करीम लाला के गिर्द भीड़ लगाना शुरू कर दिया था, अपनी क़बीलाई रवायत के मुताबिक़ उसे अपने सरदार की तरह देखने लगे। बदले में, वह समय–समय पर उनकी परेशानियों में साझा करते हुए उन्हें उनके मुश्किल हालातों से निजात दिला देता। जल्द ही करीम लाला का नाम घर–घर की ज़ुबान पर चढ़ गया और अनजाने ही उस चीज़ का हिस्सा बन गया जिसे मैटर पटाना या खोली ख़ाली कराना कहा जाता था। मैटर पटाना का मतलब था दो पक्षों के बीच मध्यस्थ बनकर उनके आपसी झगड़े का निपटारा करना, और खोली ख़ाली कराना का मतलब था किसी मकान में रह रहे व्यक्ति से जबरन मकान ख़ाली कराना। यह अनौपचारिक मध्यस्थता, सच कहा जाए तो, अदालती कार्रवाइयों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा असान थी और उसके फ़ैसलों को अदालत की मुहर वाले फ़ैसलों के मुक़ाबले ज़्यादा इज़्ज़त के साथ बरता जाता था। करीम लाला ने बिचौलिए के रूप में अपना दबदबा क़ायम कर लिया। इसकी शुरुआत तो दोस्तों और उनके दोस्तों की परेशानियों में हिस्सा लेने से हुई थी, लेकिन धीरे–धीरे पठान दक्षिण बम्बई में किसी भी क़िस्म के विवाद के मामले में एक पसन्दीदा बिचौलिया बन गया। जल्द ही, उसने पाया कि इस साप्ताहिक पंचायत की वजह से, जो हर इतवार को उसकी इमारत की छत पर बैठती थी, वह भारी पैसा कमा रहा है।

करीम लाला के नाम का आतंक

उसका कुछ ऐसा आतंक क़ायम हुआ कि बहुत से मकान उसका नाम लेने मात्र से ख़ाली होने लगे। जैसे ही मकान मालिक कहता, ‘अब तो लाला को बुलाना पड़ेगा,’ वैसे ही किराएदार मकान ख़ाली कर देता, फिर चाहे वह उचित हो या अनुचित।

करीम लाला की महँगी छड़ी की दहशत

करीम लाला अब कलफ़ किए हुए पठानी सूट से ऊपर उठकर सफ़ेद सफारी सूट पहनने लगा था। उसका रहन–सहन तड़क–भड़क से भरा हुआ था। वह काला चश्मा पहनता था और लगभग पूरे वक़्त महँगी सिगार और पाइप पीता रहता था। उसके पचासवें जन्मदिन पर उसके एक चमचे ने उसे एक क़ीमती छड़ी तोहफ़े में दी थी। पहले तो करीम लाला इस तोहफ़े को देखकर भड़क उठा और उसने कहा कि वह अभी भी इतना मज़बूत और तन्दुरुस्त है कि बिना छड़ी की मदद के चल सकता है। लेकिन जब उसके कई साथियों ने उसे समझाया कि इससे उसकी शख़्सियत में और इज़ाफ़ा होगा, तो करीम लाला तुरन्त राज़ी हो गया। इसके बाद, उसे तमाम बड़ी बैठकों में इस बाँकी छड़ी के साथ देखा जा सकता था।

यह छड़ी इस शख़्स के साथ हर कहीं जाने लगी। अगर वह मस्जिद जाता और छड़ी को छोड़कर ग़ुसल के लिए चला जाता, तो मस्जिद में कितनी ही भीड़ क्यों न हो, किसी की मजाल नहीं थी कि वह छड़ी को यहाँ से वहाँ खिसका दे या करीम की इबादत की जगह ले ले। इसी तरह, किसी सामाजिक बैठक में, अगर वह गुसलख़ाने में जाता और अपनी छड़ी को सोफ़े पर छोड़ जाता, तो उस सोफ़े पर आकर बैठने की कोई हिम्मत नहीं करता था। इस छड़ी और साधारण संसारी जीवों के बीच उसके ख़ौफ़ के काफ़ी चर्चे थे। दिलचस्प बात यह थी कि करीम लाला बिना किसी ख़ूनख़राबे के या बिना किसी कोशिश के ताक़त की इस बुलन्दी का मज़ा ले रहा था।

किताबडोंगरी से दुबई

लेखक – एस. हुसैन. ज़ैदी

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