Khichdi Notes : खिचड़ी वाले पारंपरिक नोट्स

खिचड़ी का कूटनीतिक महत्व

खिचड़ी का महत्व सिर्फ स्वाद के क्षेत्र में नहीं है.. इसके कूटनीतिक महत्व का ज़िक्र भी कई ग्रंथों में मिलता है। चाणक्य और चंद्रगुप्त ने मगध में अपना जो साम्राज्य खड़ा किया.. उसके मूल में खिचड़ी थी।

जैन ग्रंथ परिशिष्टपर्वन में एक ऐसी घटना का ज़िक्र है जिसमें एक गांव में माँ-बेटे के बीच खिचड़ी को लेकर हुए संवाद ने चंद्रगुप्त को अपनी ग़लतियों का एहसास कराया.. इसे पढ़िये और ज्ञान लाभ लीजिए। कुमार निर्मलेंदु की किताब मगधनामा में इसका विवरण मिलता है।

खिचड़ी का उदाहरण देकर चंद्रगुप्त को मूर्ख कहने वाली माँ—

बेटा, दुनिया में दो मूर्ख हैं – एक तुम और दूसरा चंद्रगुप्त। तुम खिचड़ी को पहले किनारे से खाने के बजाए, बीच के गर्म हिस्से से खा रहे हो जिससे मुंह जल जाता है और दूसरा चंद्रगुप्त जिसने सीधे मगध के केंद्र पाटलीपुत्र पर हमला कर दिया। माँ की ये बात सुनकर चंद्रगुप्त को गलती का बोध हुआ‬

आयुर्वेद के एक मूल ग्रंथ भावप्रकाश में भी खिचड़ी का वर्णन है

‬‪इस ग्रंथ में खिचड़ी को कृशरा कहा गया है ‬

‪इसका मतलब है बराबर मात्रा में दो चीजों को मिलाकर पकाना।‬

‪कृशरा वाले श्लोक में चावल, दाल, नमक, अदरक, हींग की मदद से पकाने का ज़िक्र है। फिर इसके गुण भी बताए गये हैं‬