
जब शहर में आग लगी हुई थी..
वो चुप था..
उसकी अंतरात्मा पर बीस सेंटीमीटर बर्फ़ गिरी हुई थी.
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जब दंगे हो रहे थे..
तब उसने परचून की दुकान खोल ली थी
और दाम बढ़ा दिए थे.
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जब जनआंदोलन की भूख बढ़ी..
उसने झट से अपना संदूक खोला
और पाचन की गोलियां निकाल ली..
सबको तुरंत डकार आ गई थी.
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नीति निर्माताओं ने जब नैतिकताओं का गर्भपात किया
तब उसने होनूलुलु की अर्थव्यवस्था पर चर्चा शुरू कर दी.
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आक्रामक कवि लाइन में लगकर बड़े होने का सर्टिफिकेट ले रहे थे
मुलायम कवि.. भीगे होंठ, ज़ुल्फ़ और बदन पर मांसल कविताएँ लिख रहे थे.
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ऐसी तरकीबों का सोमरस लोकप्रिय था.. खूब बिकता था
इसे बेचने वाले विक्रेता और पीने वाले लोग दोनों नशे में थे
नशे के उस पैकेट पर साफ़ साफ़ लिखा था
“ज्ञान का अभिनय सबसे ख़तरनाक होता है”
पर किसी ने पढ़ा नहीं..
आगे तीव्र मोड़ है…. जब सड़क पर अचानक ये लिखा हुआ दिखता है.. तो हर ड्राइवर सावधान हो जाता है.. लेकिन जब ज्ञान के लेन-देन आदान-प्रदान में घुमावदार मोड़ लाए जाते हैं और मूल उद्देश्य भटक जाते हैं.. तो किसी को पता भी नहीं चलता। ज्ञान का अभिनय सीधे दिमाग पर क़ब्ज़ा करता है और फिरौती में न जाने क्या क्या मांग लेता है.. इसलिए.. ज्ञान का अभिनय सबसे ख़तरनाक होता है। इससे सावधान रहिए.. ज्ञानचक्षु खोलिए.. भ्रम दूर हो जाएंगे