Chai-चरित्र ☕️ (a Tea-nalysis)… एक चाय हो जाए !

चाय बौद्धिक लोगों का पेय है.. खुली आँखों के साथ ऊँघते हुए व्यक्ति को भी एक प्याली चाय जागृत कर देती है.. चाय के निमंत्रण.. बातों की शक्कर लेकर आते हैं… प्याले में दिलचस्प क़िस्सों और किरदारों की अदरक कुटी हुई होती है.. चाय का रंग.. मेरे दिन को रंगता है.. चाय की शक्ल देखकर और उसे सूंघकर बता सकता हूँ कि चाय अच्छी है या नहीं और उसमें कहां कितनी गड़बड़ है.. पानी ज़्यादा हो गया या दूध.. ठीक से पकी नहीं है या फिर चाय की पत्ती की लाश चौथी बार चाय के बर्तन में उबाली गई है.. ये सब अनुभव है.. हमारे परिवार की पृष्ठभूमि.. और आदतों से इस ज्ञान का विकास हुआ है.. इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि चाय के घूँट मेरी लेखनी में भी उतर आए हैं। चाय के बहाने बहुत बार.. गहरी बातें कहने की कोशिश की है।

वैसे चाय की शक्ल की बात की है तो बता दूँ कि इस पर 12वीं शताब्दी में चीन के बादशाह हुईज़ॉन्ग ने कहा था कि चाय का चेहरा उसी प्रकार बदलता है जिस तरह इंसानों के चेहरे बदलते हैं। एक बार मैं जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क गया था.. तो वहां चाय का तंदूरी कुल्हड़ वाला चेहरा देखा.. इसका एक वीडियो बनाया है.. एक मिनट इस अनुभूति पर खर्च कीजिए..

ऐसी चाय तो दिन में 6-7 कप भी पी जा सकती है.. वैसे सातवीं और आठवीं शताब्दी में चीन के तांग वंश में भी दिन में पांच-सात कप चाय पीने के विवरण मिलते हैं.. तब वहां के लोग कहते थे.. कि पहला कप होंठ और गले को तर करता है.. और पाँचवा कप इंसान को उन ईश्वरों के बीच ले जाकर खड़ा कर देता है जिनकी पलक कभी नहीं झपकती।

चाय की प्यालियों के बीच वक़्त कैसे उधड़ता है.. और चाय के घूँट इंसान को कैसे सहलाते हैं.. ये बात 2007-2008 के दौर में कुछ प्रेम कविताओं में लिखी थी।

आंख भर आंसू
मुठ्ठी में एक रिश्ता लिए
अधूरे से मुझमें
पूरी होने आई थी

फिर एक प्याली चाय पर
उधड़ता गया वक़्त
सिले हुए हाथ, बातों में
इलायची सी आई थी

चाय में चैन भी तो है !

घूंट घूंट ज़िंदगी है
चाय की चुस्कियों के बीच
क्लास
सफ़हे कामयाबी के
कुछ नए रिश्ते
निवाले गुड़खानी के
दिन की शुरुआत घूंट से
तो थक के डोलती शाम को
सहलाते दो गर्म घूंट
आज अदरक डाली है
होंठ लगाए हैं
ज़ायका संभाल लेना
दो घूंट चाय कहो
या चैन
भेजा है तुम्हारे नाम

2014 में राजस्थान में 700 साल पुराने क़िले में शाम की चाय पीते हुए और सूर्य की तस्वीरें खींचते हुए मुंह से निकला…इस आधी प्याली चाय में पूरा सूरज डूब गया..

Dip Dip Sun... A Teabag

जब आज़ादी की परिकल्पना की.. तो तमाम सवालों से चाय पर मिलने की बात मन में आई।

बाहर काया गल रही है
अंदर रूह मचल रही है

आज आज़ादी का दिन है
आज बाहर निकलना है

जगाते हैं जो सवाल
उनसे चाय पर मिलना है

कर लेंगे यारी उनसे
तभी जवाब मिलना है

पर मेरी मान तू खो जा
छोड़ लेन देन का धोखा
आंखों पर हाथ सा गुज़रने दे
बस पलक मूंद चलने दे

चार आंसू हैं बहने दे
थकन शिकन अब भूल जा
ज़ोर लगा, ज़ंजीर छुड़ा
उड़ जा, उड़ जा

Sparks are Sleeping – अंगारे आराम फ़रमा रहे हैं
ये हर दौर की कविता है.. क्योंकि हर दौर में किसी न किसी मोड़ पर लोगों को लगता है कि अंगारे आराम फ़रमा रहे हैं.. मशालें फ्रीज़र में रखी हैं.. क्रमबद्ध लाशों की तरह… और इंसान.. स्वादानुसार.. हर चीज़ को आग लगा रहे हैं… मुझे लगता है कि इस मर्ज़ को वस्तुनिष्ठ (objective) तरीक़े से देखना ही इसका इलाज है। यहां अंगारे जागृत नागरिकों के प्रतीक हैं.. और चाय पिलाना.. चाटुकारिता और जी-हुज़ूरी का प्रतीक है। जब स्वप्न और आचार संहिताएं सब ख़ामोशी से सुलग रहे हों तो ये सवाल उठता है कि तालियों की भूखी व्यवस्था.. खामोशियों को कब सुनेगी ?

अंगारे आराम फरमा रहे हैं
लबालब हैं.. तपिश से
मगर हवा खा रहे हैं
राख उड़ा रहे हैं
अंगीठी में दफ़्न
चाय पिला रहे हैं

कोई इनसे पूछे
पिछली बार कब इन्हें गुस्सा आया था ?
कब अपने अंदर की नपुंसकता मारने को
ये जले थे ?
कब दबे कुचले की मशाल बने थे ?
कब अंधेरी राह को रौशन किया था ?

आंखें तरस गईं अंगारे देखने को
काश, ये गहरे जलते
ज़ेहन पर क्रांति मलते
पर अफसोस…
संसार जल रहा है
आराम चल रहा है

चाय को अध्यात्म की दृष्टि से भी देखा जा सकता है.. चाय में चीनी घोलने की क्रिया किस तरह आध्यात्मिक है.. ये भी देखिए — 1 Spoon full of life : एक चम्मच ज़िंदगी

एक कप चाय में चीनी घोलते हुए भंवर बन गया था
कप में चम्मच घूम रही थी…
एक वृत्ताकार श्रम कर रही थी
चल रही थी.. कहीं पहुंच नहीं रही थी
फिर चम्मच एक पल को ठहरी
तो उसने जान लिया
जीवन के चक्र की धुरी उससे होकर गुज़रती है
जीवन के हर घूंट की मिठास में उसका योगदान है

Tea love defined through poetry

उम्र में कोई बड़ा चाय बनाता है तो उसमें आशीर्वाद वाला फ्लेवर होता है.. प्रेमिका बनाती है तो प्यार वाला फ्लेवर.. उम्र में छोटा बनाता है तो ख्याल रखने वाला फ्लेवर.. कोई मजबूर होकर बनाता है तो झल्लाहट वाला फ्लेवर.. मित्र बनाता है तो मस्ती और मसाले वाला फ्लेवर.. और शत्रु पिलाता है तो ईर्ष्या और षड्यंत्र वाला फ्लेवर.. सब कुछ है चाय में.. बस नज़र और जिह्वा(जीभ)के तंतु जागृत होने चाहिए।

© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree