इस दौर में हर इंसान पूरी तरह भरा हुआ है, उसके अंतर्मन में या जीवन में किसी और के लिए कोई जगह नहीं है। पहले लोग टकराते थे तो एक दूसरे में छलक पड़ते थे, लेकिन अब किसी दूसरे को सहने या समाहित करने का माद्दा लगभग ख़त्म हो गया है। आने वाले दौर में, संसार में कंधे कम होंगे और रोने वाले ज़्यादा होंगे। अनुभवों को भरने के लिए खाली जगह की भारी कमी होगी। कप, कॉफी, कैफ़ीन, थकान, नींद – ऐसे तमाम शब्दों और कुछ नये प्रतीकों की मदद से ये बात कहने की कोशिश है कि इंसान किसी गैजेट की तरह बिजली से नहीं चलते, उन्हें रिश्तों और संवेदनाओं की कैफ़ीन चाहिए होती है।
Cups : प्याले
यहां ज़्यादातर
लबालब भरे हुए कप हैं
कोई चीयर्स भी कह दे
तो छलक पड़ते हैं
इन भरे हुए प्यालों को
दूर दूर तक कोई ख़ाली प्याला दिखाई नहीं देता
Caffiene : इंसान बिजली से नहीं चलते
कैफ़ीन..
एक कप कॉफी या चाय में नहीं होती..
उस हाथ में होती है
जो उलझे हुए बालों के बीच से
पूरे हक़ के साथ गुज़रता है
कभी ना थकने वाली मशीनों के इस युग में
हक़ जताने वालों की कैफ़ीन ज़रूरी है
क्योंकि इंसान बिजली से नहीं चलते
Forever Sunshine : वो दिन जो कभी ख़त्म नहीं होता
कांच के कप में भरी हुई काली कॉफी का घुप्प अंधेरा
और सतह पर नींद के सफेद बुलबुले
जैसे किसी पुरानी बावली की सीढ़ियाँ,
ऊपर.. अंधेरे से उजाले की तरफ़ जा रही हों
गले से उतरते हर घूंट के साथ
वो नींद का दामन छोड़ रहा था
नींद ने एक बार उसके हाथ को कसकर पकड़ा
और फिर आज़ाद कर दिया उसे
कहा – जाओ, हम फिर मिलेंगे
तुम्हारे इस व्यापार के.. उस पार
आंखों के खारे समंदर के किनारे
वहां हम नमक से
अपने झूठे सम्मान की बेड़ियां गलाएंगे
कुछ नया बनाएंगे
ये सुनने के बाद वो कभी सो नहीं पाया
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree
आंखों के खारेपन से
झूठे सम्मान की बेड़ियां
गलायेंगे
(अद्धभुत…)