Gandhi Ji… Smile OK Please: कैसे मुस्कुराएँगे गांधी जी ?

कुछ अहिंसक परिस्थितियां, विरोधाभास और इनमें छिपे सवाल

 

करेंसी नोट पर गांधी जी हंस रहे हैं.. क्योंकि सबसे ज़्यादा पैसा डिफेंस/हथियारों पर खर्च हो रहा है

सामान्य भाषणों में गांधी जी की अहिंसा ट्रेंड करती है जबकि हुक्मरानों की नीतियां किसी न किसी हिंसा को जन्म देती हैं

चुनावी भाषणों में हिंसा ट्रेंड करती है.. तब महात्मा को साइड में बैठा दिया जाता है

अहिंसा के पुजारी की जयंती हो या पुण्यतिथि पर होने वाले टीवी प्रसारण में हर जगह सीधी या परोक्ष हिंसा है।

हम इंसान स्वदेशी हैं.. पर हमारे ब्रांड विदेशी हैं जो हमारे नाज़ुक आत्मसम्मान की रक्षा करते हैं

नेताओं को दांडी यात्रा का नाम सुनकर थकान होने लगती है.. आज की राजनीतिक पदयात्रा पर कैमरे की नज़र न पड़े तो सब मिथ्या है… अपने 78 वर्ष के जीवनकाल में 35 वर्षों के दौरान महात्मा गांधी ने देशभर में क़रीब 79 हज़ार किलोमीटर की पैदल यात्राएँ की थीं। ये दूरी पृथ्वी के दो चक्कर लगाने के बराबर है। इतना जनसंपर्क करना आज के किसी नेता के बस की बात नहीं है।

अपना घर साफ रखने वाले.. सारा कूड़ा सड़क पर फेंक देते हैं, मन पर भी यही फॉर्मूला लागू होता है.. मन मैला न रहे इसके लिए क्रोध और सारा कूड़ा किसी दूसरे पर (कमज़ोर पर) फेंक दिया जाता है

अभिमान को नायकों का गुण मान लिया गया है, जितना ज़्यादा घमंड.. उतना ही बड़ा आदमी माना जाएगा

सादगी को मूर्खता माना जाता है.. सार्वजनिक जीवन में कोई संपन्न हो और सादगी से रहे.. तो उसे नाटक घोषित कर देते हैं हम लोग

कोई सहनशील होगा तो ये मान लिया जाएगा कि उसके पास कोई विकल्प नहीं है.. वर्ना वो भी दुनिया की छाती पर मूंग दलता..

सत्य के साथ सबसे बड़ा प्रयोग ये है कि अगर झूठ को आत्मविश्वास के साथ बार बार बोला जाए.. तो वो 50 फीसदी सच लगने लगता है.. बाकी जो कमी रह जाती है वो प्रचार और बाहुबल से पूरी की जाती है।

और जो भजन गांधी जी को पसंद था.. आज की पीढ़ी उसका रीमिक्स भी नहीं सुनना चाहती.. बच्चे कहते हैं ये बड़ा धीमा है.. हालांकि कोई भी गांधी जैसी तेज़ गति से दस मिनट चलने में हांफ जाएगा

© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree