तुम्हारी क्या ख़ासियत है ?… नयी सोच, त्याग, प्रतीक्षा !
आगे जो संवाद लिखा है.. उसका बीज नोबेल पुरस्कार विजेता हरमन हेस द्वारा 1922 में लिखे उपन्यास ‘सिद्धार्थ’ और उसी पर आधारित 1972 में आई कॉनरैड रुक्स की अंग्रेज़ी फिल्म Siddhartha में आपको मिल सकता है। लेकिन उस बीज से उठने वाली छोटी बड़ी हरी पत्तियाँ, कोपलें मेरे अंतर्मन से निकली है। ये किसी चीज़ की एक और प्रति का निर्माण नहीं है.. ये वर्णन है..
नगर वधू ने पूछा – तुम्हारी क्या ख़ासियत है ?
और प्रश्न ध्वनि चल पड़ी.. उत्तर की प्रतिध्वनि से मिलने को
सिद्धार्थ ने संतुष्टि की मुस्कान और ओस भरी आँखों को उद्दीप्त करके
कहा…मैं नया सोच सकता हूँ
मैं कुछ भी छोड़ सकता हूँ
और मैं प्रतीक्षा कर सकता हूँ
ये कहते ही मार्ग खुल गया
कदम बढ़ गया प्रेम आश्रम की ओर
और उत्तर की प्रतिध्वनि, सफलताओं के कई पहाड़ों से टकराकर गूंजने लगी
इस गूंज में नई सोच, त्याग और प्रतीक्षा समाहित थी
एक सामान्य व्यक्ति अपने आसपास के जीवन में अलग अलग अनुभवों को समेटकर कैसे सिद्धार्थ बनता है और अंतत: कैसे उसमें नदी का प्रवाह और ठहराव एक साथ आ जाता है.. ये बात पहले हरमन हेस की किताब में और फिर कॉनरैड रुक्स की फिल्म में रेखांकित हुई थी। इस फिल्म को ऋषिकेश के आसपास के इलाक़ों में और भरतपुर के महाराजा के महलों में शूट किया गया था। ये ज़िम्मेदारी स्वीडन के चलचित्रकार स्वेन नीक्विस्ट को सौंपी गई थी। स्वेन को इतिहास के दस सबसे बड़े चलचित्रकारों में गिना जाता है। ये बात इस फिल्म में दिखाई देती है। हालाँकि इस फिल्म का खुलापन.. उस दौर से बर्दाश्त न हुआ और ये कलाकृति कहीं खो गई। जब इसका समय आया तब इस फिल्म को झाड़ पोंछकर सहेजने वाले इस तक पहुंच गये।
शशि कपूर और सिमी ग्रेवाल की अदाकारी के अलावा इस फिल्म का एक सुखद पहलू था हेमंत कुमार की आवाज़
बांग्ला में गाये उनके दो गीत मैंने दृश्यों के बीच से निकाले, क्योंकि और कहीं मिले नहीं..
पहला है – ओ नोदी रे
और दूसरा है – पाथेर क्लांति भूले
इन्हें सुनना भी किसी थेरेपी से कम नहीं है
ये फिल्म देखकर जो मैंने महसूस किया और सीखा वही मेरी समीक्षा है। आलोचना के पत्थर फेंकने के बजाए मैं कुछ खिड़कियाँ खोलना चाहता हूँ.. जहां से सबको कोई नया दृश्य दिखे।
अगले दृश्य प्रतीक्षा कीजिए… प्रतीक्षा में बहुत शक्ति होती है।
Siddharth Tripathi ✍️ SidTree