शीर्षक पढ़कर ये बात मन में आई होगी कि महाभारत के नन्हे मुन्ने विश्लेषण का अर्थ क्या है ? नन्हे =आकार में छोटे, मुन्ने =बच्चे के भाव से सिखाने वाले यानी कुल मिलाकर इनमें नीति और व्यवहार से जुड़ी शिक्षाएँ हैं। कुछ प्रसंग लिखे हैं, धीरे धीरे ये सीरीज़ बढ़ती जाएगी। कोेई प्रसंग जोड़ना चाहते हैं तो प्रतिक्रिया दे सकते हैं। मुझे पूरी उम्मीद है कि समय के साथ एक अच्छा संकलन तैयार होगा, और इससे कई अमर सूत्र निकलेंगे जो सिर्फ मेरे और आपके लिए ही नहीं, पूरे समाज के लिए पथ प्रदर्शक साबित होंगे।
1. समय का चक्र किसे कुचलता है ?
पहला दिन:
दुर्योधन अजेय था, अपनी शक्ति को निहार रहा था
18वां दिन:
दुर्योधन लाशों के साथ अकेला था, टूटी जाँघ लिए.. शव गिन रहा था
सूत्र: समय का चक्र, अभिमानी और दिव्यास्त्रों/शक्तियों से लैस योद्धा को भी कुचल देता है
2. कोई भी मोह परिणाम के विषय में नहीं सोचता
धृतराष्ट्र – पुत्र मोह
भीष्म – पिता का मोह
द्रोणाचार्य – नौकरी का मोह
दुर्योधन – संपत्ति का मोह
कुंती – सामाजिक प्रतिष्ठा का मोह (बेटे कर्ण को नदी में बहा दिया)
सुदेशणा (राजा विराट की पत्नी, द्रौपदी को अज्ञातवास में छेड़ने वाले महारथी कीचक की बहन) – भाई का मोह
3. क्रोध की सभ्यता और असभ्यता पर युधिष्ठिर का ज्ञान
वनवास के दौरान युद्धिष्ठिर की अपराध बोध/प्रायश्चित भाव से मिश्रित शांति पर द्रौपदी ने कटाक्ष किया, उसे ढूँढने और चाहने पर भी क्रोध नहीं मिल रहा था और वो बेचैन थी.. इस पर युद्धिष्ठिर ने क्रोध के दायरों और चरित्र को परिभाषित किया
क्रोध की भी अपनी मर्यादा होती है,
क्रोध किसी नेत्रहीन के हाथ से चलने वाला पत्थर नहीं है जिसकी दिशा नियुक्त नहीं होती।
क्रोध को अनाड़ी के धनुष से निकला हुआ बाण नहीं होना चाहिए, उसे तो अर्जुन का बाण होना चाहिए, कि धनुष से निकले तो लक्ष्य को भेद दे।
क्रोध को सभ्य होना चाहिए, व्यक्ति को अंधा कर देने वाला क्रोध न तो तलवार बन सकता है, और न ही ढाल।
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree