खरोंच लगते ही ख़ून बाहर आता है या रोशनी ? क्या घावों में रोशनदान जैसा भी कुछ होता है?
सरल से दिखने वाले इस सवाल का जवाब सूफ़ी शिक्षाओं में छिपा हुआ है। ये तस्वीर मैंने इस बारे में सोचते हुए ही ली.. इसे देखिए, कविता पढ़िए.. और दरवेश टाइप फ़ील कीजिए… और हाँ.. गोल घूमने की ज़रूरत नहीं है। उसके बग़ैर भी ऊपरवाले से कनेक्शन हो जाता है।

खरोंच लगते ही,
रोशनी छनकर अंदर आने लगती है
जगमगाने लगता है तन और मन अंदर ही अंदर
ये तजुर्बे की रोशनी है
जो हर ज़ख़्म से मिल रही है
हर बार आपके घाव..
आपके रोशनदान बन जाते हैं

This Poem is inspired by Teachings of Sufism. While writing this poem, I felt the essence of Shams Tabrizi & Rumi.
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree