डाक विभाग बर्फ़ की सिल्ली की तरह जम गया है, नेटवर्क ने हड़ताल कर दी है, वक़्त के इस Offline टुकड़े में कुछ पुराने बिखरे हुए पत्र मिले हैं। दुनिया से खुद को काटकर गृहस्थ जीवन जीना भी किसी काव्य से कम नहीं। ये वक़्त के कुछ ऐसे अंश हैं, जो आपको अपने से लगेंगे। 7 नये हैं और 5 पहले के लिखे हुए हैं, कुल मिलाकर 12 हुए…
Sleep in Pieces : नींद के टुकड़े
उसकी नींद के टुकड़े मेरी मोहब्बत का सामान बन गये हैं
Charred in love : आंच लग गई
आंच ज़्यादा होने पर
जैसे दाल, सब्ज़ी या रोटी, लग जाती है, चिपक जाती है बर्तन से…
वैसे ही वो भी लग गई है मुझसे
Wax Statue : मोम के पुतले
उसकी आँखें
जलते जलते फड़कने लगीं
मोम बहने लगा
Marriage : साथ-श्रृंगार
शाम के माथे पर लाली
मानो आसमान की मांग भर गई हो
खिलखिलाती रहो
Pregnant : नया जीवन
तुमने खुद में ज़िंदगी को पनाह दी है
तुम्हारी पलकों पर मेरे लबों से लिखी इबारत कुबूल हो
Stairs : सीढ़ियां
आज दीवारों से दरारें झाँक रही थीं
उम्र की सीढ़ी से उतरते हुए
वो काँप रही थी
Hollow : खोखला
उसने ज़ोर से दरवाज़ा खटखटाया
तब जाकर समझ में आया
कि अंदर से कितना खोखला हूं
आवश्यकता
मुझे तुम चाहिए होती हो,
पर मुझे तुमसे कुछ नहीं चाहिए होता
खौलता हुआ पानी
दूध होता तो उबल चुका होता अब तक
पानी है इसलिए आँखों में खौल रहा है
वो उबलकर बाहर नहीं गिरता
भाप बनकर उड़ जाता है
क्योंकि प्यार की आंच ज़्यादा है
पाँच फ़ुट दो इंच
कुछ तुम उड़ी-उड़ी सी हो
कुछ मैं झुका-झुका सा हूँ
इसलिए आज तुम्हारी ऊँचाई में
कुछ इंच का इज़ाफ़ा हुआ है
तिजोरियाँ
खर्च हो जाओ मुझमें
इतनी बचत करके क्या करोगी
कर लो प्रयत्न सारे
अंतत: यादों की तिजोरियाँ भरोगी
अंगीठी
गहरी तपिश
अंगीठी वाले कोयले सी
उस पर दमकता
उनका ख्याल
जिस्म-ओ-रूह को
ठंड से
वही तो बचाता है
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree