मेरे दोस्त, मेरा अंधेरा पी गये : 7 Dimensions of Friendship

जहां मुठ्ठी होती है वहां हाथ मिलाने का मौका नहीं मिलता, हाथ जोड़ने का मौका नहीं मिलता, हाथ को किसी कंधे पर रखने का मौका नहीं मिलता। मुठ्ठी खोलते ही दोस्ती की सल्तनत शुरू हो जाती है। दोस्ती में अदृश्य सिहरन है, उपासना है, रोशनी की लकीर है, किसी का बोझ उठाने वाली ताकत है, राज़ को रखने वाली तिजोरी है, और वो अंधेरा भी जिसमें सारी महत्वाकांक्षाएं, स्वार्थ और आत्मा पर चिपके कालिख के कण धुल जाते हैं। ख़लील जिब्रान ने एक बार कहा था “Your friend is your needs answered”..  यानी जहां ज़रूरतों का जवाब मिल जाए.. वही दोस्त है। मुझे लगता है कि कई बार स्थितियां भी दोस्त की भूमिका निभाती है और कई बार जीते जागते इंसान भी अपनी अपनी बदलती दिशा के अनुसार मित्र या शत्रु बन जाते हैं। फिर भी हर मित्र आपके मन के लेटरबॉक्स में कुछ ना कुछ छोड़ जाता है। दोस्त रहे या ना रहे, दोस्ती रहती है।

आज सात कविताएं आपके साथ शेयर कर रहा हूं.. इनमें दोस्ती के सात आयाम हैं। पढ़ने में 5 से 7 मिनट लग सकते हैं लेकिन इन आयामों को सहज स्वीकार करने में कई बार लोगों को पूरा जीवन लग जाता है। फिर भी मुझे उम्मीद है कि यहां से शुरुआत करके आप सबको अच्छा लगेगा।

  1. उसने अंधेरा पी लिया : Glow of a Friend
  2. मुस्कान से भी सीलन सूखती है : Smile of a friend
  3. ज़ख्मों वाला गुलदस्ता : A Poem on SMS
  4. फोन अगर निस्वार्थ बजने लगे तो हैरानी होती है : Ringtone
  5. अ-मित्र : Unfriend
  6. तस्वीर पर माला डाल देते हैं दोस्त : Profile Picture
  7. ग़ुब्बारे थे छोड़ दिए : Balloons

उसने अंधेरा पी लिया : Glow of a Friend

अंधेरी आधी रात में
जुगनू सा दमके

छोटा सा, सच्चा सा
वो दोस्त सा उजाला

लिखता जाए फलक पर
कोई बात हल्के-हल्के

साथी नहीं, सूफी है वो
पीता है अंधेरा

देखो रोशनी का नाच
घूमके…. घूमके

International Version

Like a Firefly
In the Dark Night

Like a pen
writing something
on canvas of dark clouds

Like a bonfire
When cold wind blows

He drinks all the Darkness
He dances like a sufi
All over your Life

तेरी मुस्कान से सीलन सूखती है : Smile of a friend

बेतरतीब सा वो
आंसुओं से लाल था
उसकी भीगी आंखों से
सील गई मेरी दुनिया

एक बार होंठों का लिहाफ
खोल दे मेरे यार
मेरी सीलन
हो जाएगी धुआं
तेरी मुस्कान से मेरी सीलन सूखती है

ज़ख्मों वाला गुलदस्ता : A Poem on SMS

एक दोस्त ने ज़ख्म का ज़िक्र किया

जब जब उमंग उठी
तुझे गले लगाने को
तीर का तरकश तेरा तैयार था
मेरे हृदय को बींध जाने को

तो मैंने बताया कि ज़ख़्म कैसे गुलदस्ते बन जाते हैं

तरकश तो मेरा खाली था
हर तीर दिल पर भारी था
मैं तीर दर तीर निकालता गया
ज़ख्मों पर खाद डालता गया
जो फूल निकले तो सबने कहा
ये दिल नहीं गुलदस्ता है

फोन अगर निस्वार्थ बजने लगे तो हैरानी होती है : Ringtone

This one is connected to your ringtone, say hello to this cyclic poem, it starts and ends on same point, the ending explains the start and vice versa.

बजने लगी रिंगटोन
पूछने लगी तू कौन
लोगों की इस भीड़ में
सारा जग क्यों है मौन

जेब से निकालकर फोन
देखते है.. अपना कौन, पराया कौन
कोई है.. कहां है.. मैं कौन, तू कौन

रक्त उछलकर नाचने लगता है
जब आता है किसी का फोन
यूं ही, बिना किसी काम के

आदेश, मिन्नतें, सौदे, संदेसे
हर बार बजते हैं
लेकिन अक्सर नहीं बजती रिंगटोन

Unfriend : अ-मित्र

मेरे अंतर्मन में आप
एक जल चुकी मोमबत्ती की तरह हैं..
जिसकी रोशनी और जिसका मोम..
विलीन हो चुका है
और धागे के जलने की ज़रा सी महक बाक़ी है
कुछ देर में आप खो जाएँगे..
मेरे वातावरण में

Profile Picture : तस्वीर पर माला डाल देते हैं दोस्त

इस कविता के दो हिस्से है, एक ध्वनि है और दूसरी प्रतिध्वनि

ध्वनि (Sound)

वाह-वा और दाद देने वाले असली हाथ
अब नहीं पहुंच पाते कंधे तक
बस निर्जीव ‘प्रोफाइल पिक्चर’ पर
हर रोज़ माला चढ़ा देते हैं दोस्त

यार बहुत हैं
प्यार बहुत है
बहुत चाहते हैं मुझे
इसलिए अब मुझे दीवार पर फ़ोटो बनकर टंगे रहना अच्छा लगता है
मान-सम्मान-अपनापन और वजूद
घर बैठे मिल रहा हो
तो मुलाक़ातें बोझ लगती है

प्रतिध्वनि (Echo)

देखो, गले में कितने हार हैं !!
जैसे कोई नेता है और चमचे चार हैं
अलग अलग कोण से ली जा रही तस्वीर में
लोकप्रिय होने की चाहत है
लेकिन… कुछ ही घंटों के बाद…
तारीफों की ये मालाएं सूख जाती हैं
और कैमरा फिर ढूंढने लगता है
अपने ही जीवन का कोई ऐसा कोना
जो दिखाया जा सके
ये दिखाना..
उस पीढ़ी की दिनचर्या है..
जिसने अपने अंदर कभी देखा ही नहीं

ग़ुब्बारे थे छोड़ दिए : Balloons

उन्हें हाथ छुड़ाना था
उन्हें ऊपर जाना था
उन्हें पूरी दुनिया को
अपना रंग दिखाना था

ऊंचाई पर गए
दबाव में फटे
और हवा में मिल गये
जैसे कभी थे ही नहीं

गुब्बारे थे छोड़ दिए

© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree