जैसे जैसे उम्र बढ़ती है, वैसे वैसे बचपन से दूरी बढ़ती जाती है, और बचपन जैसी आज़ादी की ख़्वाहिश भी। पिता बनने का सौभाग्य किसी को तभी मिलता है जब वो बचपन से एक निश्चित दूरी बना चुका होता है। ऐसे में Father’s Day के दिन किसी भी पिता को कुछ शब्दों की मदद से उसके बचपन में ले जाना, या उसकी नज़र से बचपन को देखना, एक अच्छा उपहार हो सकता है। कविवार में इस बार यही मेरी कोशिश है।

100 Shades of a Child : बच्चे के सैकड़ों रंग
कई बार बच्चे को देखकर लगता है
जैसे उसने अब भी
अपने किसी पिछले जीवन की डोर पकड़ी हुई है
बंदर, चींटी, शेर, चूज़ा, गौरैया
सबका समावेश लगता है उसमें
फिर रोकर, हँसकर, कूदकर, चलकर…
मुँह से शब्दों को छिड़ककर,
झटक देता है, अपने सारे पूर्वजन्म
और बच्चा, बड़ा हो जाता है
दुनिया में रहने लायक़ हो जाता है
Speed of Sound : आवाज़ की रफ़्तार
“ये लड़का सुनता नहीं है”
… मां ने कहा
बच्चा मानो पानी के अंदर डूबा हुआ था
आवाज़ उस तक मुश्किल से पहुंच रही थी
आवाज़ की लहर ने जब आहट दी..
तो बच्चे ने बस किसी तरह,
पानी जैसे एकांत से खुद को बाहर खींचा
और बोला – हां मम्मा क्या हुआ ?
वहीं पिता, आरामकुर्सी पर बैठे सोच रहे थे
“आवाज़ की तरंगें पानी में मंद चलती हैं
मां ने हवा में बोला था
बच्चे का मन पानी में था
ये माध्यम का फर्क है
लापरवाही नहीं”
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree