Try to Stand, Talk & Walk…. while you are Melting !
जब ज़ुल्म बढ़ता है
मैं खुद को चिट्ठियां लिखता हूं
गुस्से को सहलाता हूं
उसे मिट्टी से नहलाता हूं
लेकिन न्याय नहीं मिलता
तपिश कम नहीं होती
तराज़ू के कांटे पर नंगी खड़ी
सबकी चुप्पी देखो कम नहीं होती
जब दर्द बढ़ता है
मैं ज़ेहन पर बर्फ मलता हूं
चलता रहता हूं
भले ही रोज़ गलता हूं
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree