आसमान ने हीरे की अंगूठी पहनी है
दिलों की बर्फ़ पिघल रही है
जमी हुई चेतना पंख फड़फड़ा रही है
हर कोई ठंडे घरों से बाहर निकलना या झाँकना चाहता है
सूर्य की इन किरणों में प्रेम की अनुभूति है
क्या वाग्देवी सरस्वती ने खुद ये मौसम लिखा है ?
ज़रूर उन्होंने ही लिखा होगा,
क्योंकि इंसान की लिखी हुई चीज़ें तो अक्सर कॉन्क्रीट की होती हैं
क्या बेचैन, भागता हुआ, अट्टालिकाओं से झाँकता हुआ,
बड़ा आदमी इस भाषा को पढ़ सकता है ?
ये भाषा आज के दिन में सिमटी हुई है
और इसका इल्म होना ही वसंत पंचमी है
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree
ऐसे नए प्रतीक भी देवी सरस्वती ने ही रचें हैं ऐसा लगता है।बहुत सुंदर सामयिक कविता।
अद्भुत, बढ़िया।