प्रश्नों का चरित्र भी अजीब होता है, वो तभी आते हैं जब आप थोड़ा धीमे हो जाते हैं, थोड़ा सा ठहर जाते हैं। इस दौर में ठहराव को मृत्यु के समान माना जाता है। ठहराव से हर कोई डरा-डरा सा लगता है और जीवन में हर वक़्त व्यस्त रहने को ही ईश्वर की कृपा माना जाता है.. इसका दूसरा पहलू ये भी है कि अगर ठहर गये तो प्रश्नों का सामना करना पड़ेगा।
लंबे अरसे के बाद, पिछले हफ़्ते मैंने छुट्टी ली और थोड़ा ठहरने और चुपचाप रहने का अनुष्ठान किया। घर पर रहा, बिना किसी काम या प्रयोजन के हर रोज़ दिल्ली के किसी अनजान या जाने पहचाने कोने की तरफ निकल जाता था। निरुद्देश्य घूमता था और कोई नई याद लिखता था। पुरानी दिल्ली की भीड़ में गुम होकर खाता पीता रहा। मेरे चारों तरफ हर कोई, किसी ना किसी उद्देश्य के साथ भाग रहा था। उन सबके बीच मैं सहज और सापेक्ष रूप से धीमे चल रहा था, बिना किसी आवेग के। इस धीमी रफ़्तार में हारने का बोध नहीं था। जब घर पहुँचता – तो देर रात तक पढ़ने का क्रम चलता था। ये पढ़ाई भी बिना किसी उद्देश्य वाली पढ़ाई थी, नया जानने और समझने के उत्साह से भरी हुई। ठंडी और गहरे काले रंग वाली रातों को पार करके अक्सर आसमान को हल्का गुलाबी करने वाले उषा काल तक, कविताएँ और लेख लिख रहा था। इन छुट्टियों में एक बार फिर ये लगा कि ठहराव, अगर प्रयास की हत्या ना करे, तो ये बुरी चीज़ नहीं है।
जिस तरह ISRO (Indian Space Research Organisation) एक साथ कई सैटेलाइट लॉन्च करता है, ठीक उसी तरह मैंने भी एक साथ 10 प्रश्नवाचक कविताएँ प्रक्षेपित की हैं। ये सभी सफलतापूर्वक अपनी कक्षा यानी ऑर्बिट में स्थापित हो गई हैं। इनमें आपके आसपास का जीवन है, जीवन से जुड़े कुछ मूल प्रश्न हैं और इनके उत्तरों में संवेदनाएँ गुँथी हुई हैं। ये सभी, 2015 से 2018 के बीच, पहले से दसवें नंबर तक इसी क्रम में लिखी गई हैं। यानी दसवीं Latest है। इनमें आपको फैले हुए ख़्वाब भी मिलेंगे और लोकतंत्र में इजाज़त माँगकर विरोध करने वाली पालतू भीड़ भी।
प्रश्नPoetry 1 : ख़्वाबों का सिर छत से टकराने लगा
नज़र ऊंची
पैर को उचककर देखने की आदत
आजकल मेरे ख़्वाबों का सिर.. छत से टकराने लगा है
क्या छतों के नीचे ख्वाब बड़े नहीं हो सकते ?
या फिर एक वक़्त के बाद
ऊंचा होने के बजाए ख़्वाबों का फैलना ठीक रहेगा ?
प्रश्नPoetry 2 : Resonance | जीवन की धुनों का समारोह
मेरे आगे नाचती हुई वसंत की हवा
बालकनी पर लोहे की छड़ों को पकड़कर
झूला झूलती बारिश की बूंदें
पीछे रवि शंकर का सितार वादन
और कहीं दूर से आती
मां के खांसने की आवाज़
क्या दर्द और खुशी की धुनें
एक दूसरे का हाथ पकड़कर उत्सव मना सकती हैं ?
प्रश्नPoetry 3 : Dry Days | सूखा हुआ सा कुछ
ठंडे पानी में,
साबुन के बेईमान झाग में,
उबलते हुए तेल के धुएँ में,
उसके हाथों की सतह सिकुड़ने लगी थी
फिर नये फूल-पत्तों का मौसम आया
लेकिन उसके हाथ फिर भी सूखे हुए ही थे
बस मौसम ने एक एहसान किया
उन उंगलियों में एक गुलाब का फूल फंसा दिया
क्या सूखी हुई हर चीज़ को दोबारा खिलने का मौका मिलता है ?
प्रश्नPoetry 4 : Clocks Are Locks ?
घड़ी की सुई को पकड़कर लटके हुए लोग
एक गोलाकार रास्ते पर चलते हुए जीवन जीते रहते हैं
जो घड़ी की रफ़्तार है
वही इन लोगों की रफ़्तार है
जो घड़ी की सुइयों की दिशा है
वही इन लोगों की दिशा है
इस सफ़र में
घड़ी की सुइयों से
लम्हे कटते जाते हैं
छोटे होते जाते हैं
फिसलते जाते हैं
क्या वाकई वक़्त इन लोगों की मुठ्ठी में रहता है ?
प्रश्नPoetry 5 : Relationships Die ?
दुनिया से जाता हुआ आदमी
कई सीढ़ियां छोड़ जाता है
और कई ज़ंग खाए पुल भी
न जाने कैसे
नए रास्ते बन जाते हैं
टूटे और छूटे हुए रिश्तों के लिए
क्या कोई रिश्ता वाक़ई ख़त्म होता है ?
प्रश्नPoetry 6 : Decoration | सजावट का शौक़
कागज़ की मछली
खूंटे से बंधी रंगीन चिड़िया
शेर की खाल की नर्मी क़दमों के नीचे महसूस करना
काले सफेद संगमरमर पर खड़े नाचीज़ राजा, वज़ीर, प्यादे
आईने को भी इजाज़त नहीं कि सच दिखा सके
सजावट का ये शौक हमें क्या बना रहा है ?
प्रश्नPoetry 7 – बेचारी या Bitch ?
बेचारी और Bitch
इन दो शब्दों, दो भाषाओं, दो संस्कृतियों के बीच खड़ी औरतें,
किसी तीसरे शब्द का इंतज़ार कर रही हैं।
क्या ये तीसरा शब्द ही तीसरा विश्वयुद्ध है ?
प्रश्नPoetry 8 – सपने में तैरती सत्य की लाश
कोई सपना अपना सा टूट जाए
तो आज की सच्चाई को आँखें खोलकर डुबो दूँ
एक एक सांस को तरसता वो सच मेरा-तुम्हारा
थोड़ी छटपटाहट के बाद
किसी मुर्दे की तरह सपने की सतह पर तैरने लगेगा
न कोई शुरुआत, न कोई अंत
सपने में घुलने लगेगा सत्य का मृत शरीर
और दोनों बहने लगेंगे एक साथ
क्या सपना कभी सच से आज़ाद हो सकता है ?
प्रश्नPoetry 9 – तीव्र ज्वर, एक आत्मसंवाद
Sometimes high fever dismantles you into pieces and then starts a conversation between you and your body.
तीव्र ज्वर
काया को
जिजीविषा से, पूर्वाग्रहों से, अहंकार और आत्मप्रदर्शन से
काटकर अलग कर देता है
बिलकुल वैसे ही जैसे
किसी ने नाल काटकर मां से बच्चे को अलग कर दिया हो
और इस दर्द से भरे एकांत में
इंसान का अपने ही शरीर से परिचय होता है,
बच्चा जिस तरह अपनी नन्हीं अंगुलियां,
अपनी त्वचा का रंग,
अपनी नाज़ुक देह को देखकर चकित होता है
वैसा ही विस्मय, ज्वर में तप रहे इंसान के चेहरे पर दिखता है
ये तीव्र ज्वर किसी रोग की सूचना है ?
या आत्मसंवाद की दिशा में ले जाने वाला रास्ता ?
प्रश्नPoetry 10 : इजाज़त है ?
राजमुकुटों में जड़े नगीनों पर
बनावटी मुस्कानों पर
हवस की लपटों से दमकते चेहरों पर
व्यवस्थाओं और शब्दों की सलाखों पर
एक आवारा भीड़
पूरी शिद्दत से थूकना चाहती है
अपनी अपनी ज़ंजीरों से बँधे इन लोगों ने
लोकतांत्रिक अर्ज़ी भेज दी है…
इजाज़त है ?
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree, (2015-2018)