Equator : रंगभेद वाली भूमध्य रेखा

जब जातियां नहीं थीं, धर्म नहीं थे, तब भी रंगभेद था। रंग स्याह होते ही आदमी गुलाम हो जाता था। गुलामों की उधड़ी हुई पीठ आज भी कई तस्वीरों में दिखाई देती है। ज़ुल्म के ये प्रशस्ति पत्र पहले भी थे, आज भी हैं। त्वचा का रंग आज भी सपनों की कई नदियों को किसी बांध की तरह रोक लेता है। शायद काला रंग देखकर हंसने वाले, अंधेरे से डरते हैं। रंगभेद की भू-मध्य रेखा इस बार के #कविवार से होकर गुज़र रही है। इसे पढ़िए-समझिए और सारे रंगों को आपस में मिला दीजिए।

सूरज की लकीर हमसे होकर गुज़रती है
हमारा रंग स्याह है
हाँ, हम काले हैं
हमारी आत्मा पर छाले हैं

 

मैदान से बाहर ही रोक दिया हमें
क्यों ?
कहा – ये साले काले हैं
दफ़ा करो इन्हें, हर गेट पर ताले हैं

 

हम पर हँसने वाले अंधेरे से डर गए
देखो इन्हें तो हिम्मत के भी लाले है

 

हमारा पसीना भी बहा… तो वो सोना था…
और वो, सब बेचकर ज़ेवर पहनने वाले है

 

© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree