Beauty vs Mirrors : ख़ूबसूरती और आईने का मुक़ाबला

घर का आईना आजकल आपको अंट-शंट बकता है ?
एक दौर था.. जब आईने या दर्पण का स्थान प्रेमी या प्रेयसी के समकक्ष हुआ करता था…

सोचकर देखिए.. आईना हमेशा एक गुप्त प्रेमी या प्रेमिका की तरह रहा है… उसके सामने आते ही लोग खुद को निहारने लगते थे। कोई कुछ नहीं बोलता था, लेकिन अपने आप ही तारीफ़ हो जाती थी। लोग आईने के सामने आकर खुद से प्यार करने लगते थे। चाहे काले से सफ़ेद होते बाल हों, चेहरे पर समय की सलवटें हों, चाहे आँखों के नीचे नींद का काला पानी ठहरा हुआ हो। बड़े से बड़े आलोचक की आँख भी, अपने शरीर के इन बदलावों को अनुभव के रूप में देखती थी। खुद को आईने में देखते हुए एक लिहाज़ रहता था, सहानुभूति रहती थी और दैनिक जीवन की क्रूरता को सम्मानजनक तौर पर जीने का बोध रहता था। सब ये सोचते थे कि जैसे हम खुद को आईने में देखते हैं, कोई हमें भी वैसे ही देखे।

लेकिन अब… हर विज्ञापन, हर प्रोडक्ट, हर अभिनेता, हर बड़ा आदमी ये कहता है..

जाओ जाकर आईना देखकर आओ,
शक्ल देखी है अपनी आईने में,
कितना बेडौल शरीर है,
पेट निकल रहा है, बाल सफ़ेद हो रहे हैं
झुर्रियाँ आ रही हैं, बुढ़ापा आ चुका है

इन वाक्यों से, व्यापारियों ने प्रेरणा ले ली और धीरे धीरे आपके घर में मौजूद आईने पर बाज़ार का क़ब्ज़ा हो गया। आपको लगने लगा कि आईना ही ये सब कह रहा है। यक़ीन दिलाने की ये राजनीति.. उद्योगपतियों की कोख से जन्मी है।

आप महसूस करेंगे कि ये दौर, अपने आप से असंतुष्ट लोगों का दौर है। जिसके पास जो है, वो उसे अधूरा लगता है। बाज़ार ने मानक बना दिए हैं और सब लाइन लगाकर, फ़ीस देकर, मन मारकर, जीवन को अर्थ देने वाले दूसरे सभी काम छोड़कर, उन मानकों पर खरा उतरने की कोशिश कर रहे हैं। कोई अपनी शक्ल से नाराज़ है, किसी को अपना क़द छोटा लगता है, किसी को फ़िल्मी हीरो/हिरोइन जैसी काया चाहिए, किसी को ट्रैक पर दौड़ने वाले धावक से मुक़ाबला करना है। किसी को पैंट की हदों के पार जाते उम्रदराज़ पेट से समस्या है। तो किसी ने घने, काले.. कभी ना झड़ने वाले बालों का स्वप्न देख लिया है। कुछ समय बाद आप देखेंगे कि ये सभी मानक लगभग अमरत्व के पैमानों को छूने लगे हैं। और लोगों में देवलोक का प्रतिनिधि बनने की होड़ चल रही है।

इस विषय को लेकर किसी के पास जाइये, बातचीत कीजिए.. आपको महसूस होगा कि आपके आसपास के ज़्यादातर चेहरे, आईना बन गये हैं… और हर वक़्त आपको सतही सूचनाएँ दे रहे हैं। और जिन्हें आप अपनी कमियाँ समझ रहे हैं, वो दरअसल उम्र और जीवन के संघर्ष की सूचनाएँ हैं। एक तरह का अलार्म हैं… जिसे सुनकर आप खुद से बिना घृणा किए, उचित बदलाव कर सकते हैं। आईने को अपना आलोचक मत बनाइये। आईने के साथ प्रेमी/प्रेमिका वाला वो गुप्त संबंध बना रहने दीजिए।

एक बात और…ख़ूबसूरती के संदर्भ में मन की सुंदरता की बात होनी बंद हो गई है, क्योंकि वो कोई ऐसा प्रोडक्ट नहीं है जिसे बाज़ारवादी ताक़तें बेच सकें…और बढ़ती उम्र का भी उस पर कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता। ये एक ऐसा Anti-Ageing Product है जो ईश्वर ने हर इंसान को दिया है, आपको भी दिया।

ख़ैर बातचीत कुछ लंबी हो गई, यहाँ छोटी सी कविता भी पढ़ लीजिए, उम्मीद है ठीक लगेगी।

आईने की आदत है,
कुछ न कुछ छीन लेता है


आंखें, हंसी, बोलने का सलीका..
आंसू, ग़ुस्सा, थोड़ा रंगीन, थोड़ा फीका..
हर चेहरा मौलिक होता है..
लेकिन सिर्फ तब तक,
जब तक आईने से सामना न हो जाए


हर बार आईना देखते हुए..
कुछ न कुछ चोरी हो जाता है..
सबकी खूबसूरती फिक्रमंद हो जाती है

© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree