किसी का जन्मदिन, उसके लिए एक बहुत बड़ा और एकदम नया अवसर होता है। ये दिन अपने ख़्यालों में अपनी ही तस्वीर बनाने और उसमें रंग भरने का होता है। आँखों के सामने कई पुराने वीडियो चल रहे होते हैं, पर किसी और को दिखाई नहीं देते। ये दिन खुद को दूसरों की नज़रों से देखने का भी होता है। आपके आसपास की जो दुनिया है, उसकी नज़रें, उसके शब्द, अदृश्य भावनाएँ, छिपे हुए प्रयोजन, और कई बार रंगमंच वाला अभिनय भी दौड़कर आपकी तरफ़ आ रहा होता है, कुछ कुछ वैसे ही जैसे महारथी अर्जुन के बाण, इच्छा मृत्यु का कवच पहने पितामह भीष्म की छाती की तरफ़ गये थे और उन्होंने सबको सहर्ष स्वीकार कर लिया था। जन्म दिवस की वार्षिक पुनरावृत्ति का एक दिन.. भावनाओं की भीड़ लेकर आता है, और ये भीड़ आपकी शख़्सियत के पर्वत पर बने देवालय के द्वार पर खड़ी हो जाती है। फिर साल में एक बार कपाट खुलते हैं। और आप सब कुछ स्वीकार कर लेते हैं। सिर्फ एक इंसान के अस्तित्व का ऐसा उत्सव मनाया जाना, आश्चर्यजनक है।
जन्मदिन मनाए जाने की शुरुआत कैसे हुई इस पर अध्ययन किया था तो कुछ बातें पता चलीं। जैसे 3000 ई.पू. में (यानी आज से पांच हज़ार साल पहले) ईजिप्ट के फराओ (राजा) का बर्थडे मनाया गया था। वहां से ये चलन यूनान पहुंचा और वहां के लोग, केक में मोमबत्तियां जलाकर लगाने लगे। इसके बाद रोमन नागरिकों में जन्मदिन मनाने का चलन शुरू हुआ, हालांकि महिलाओं के जन्मदिन तब भी नहीं मनाए जाते थे। क्रिश्चियन लोग शुरुआत में जन्मदिन मनाने को बुरा समझते थे। लेकिन बाद में चौथी शताब्दी में उन्होंने इस चलन को स्वीकार किया और जीसस का जन्मदिन मनाने लगे।इसके बाद पूरी दुनिया में ये परंपरा फैलती चली गई। चीन में भी बच्चे का पहला जन्मदिन मनाया जाने लगा लेकिन आधुनिक ज़माने के बर्थ-डे केक बनाने और बर्थ-डे पार्टी करने का चलन 18वीं शताब्दी में जर्मनी में शुरू हुआ। ये तो रही इतिहास की बात, लेकिन भागदौड़ वाले आधुनिक दौर में, जन्मदिन पहले के मुकाबले थोड़े और गहरे हो गये हैं। इनमें पार्टी के साथ साथ आत्म चिंतन और लक्ष्य निर्धारण भी शामिल हो गया है।
जो लोग विचार प्रधान होते हैं उनके लिए जन्मदिन आध्यात्मिक आत्मविश्लेषण का ज़रिया बन जाते हैं। जन्मदिन के दिन ये दो कविताएँ मेरे अंतर्मन में गूँजती हैं। एक हिंदी में है (अंग्रेज़ी अनुवाद के साथ) और एक अंग्रेज़ी में है (मर्म समझने के दिशा निर्देशों के साथ)। जहाँ भावार्थ समझाने की ज़रूरत पड़ी है वहाँ मैंने विस्तार से इसे समझाया है।
- Home vs World : घर बनाम दुनिया
- SidTreenium : Self Portrait of an Element
Home vs World : घर बनाम दुनिया
और उस योद्धा ने हथियार रख दिये
क्योंकि वो जानता था कि किसी भी युद्ध में उसकी जीत निश्चित है
चलती, फिरती, साँस लेती लाशें देखकर उसे क्रोध नहीं आता
लहू की प्यास उसे नहीं लगती, धनुष पर बाण वो नहीं चढ़ाता
इतने निरर्थक हो गये है युद्ध, रणभूमि में ध्यान लगा रहे हैं बुद्ध
वो ढूँढ रहे हैं घर का दरवाज़ा
जो बाहर है ही नहीं…
घर सिर्फ़ अपने अंदर है
बाहर सिर्फ़ दुनिया है
International Version
That Warrior throws weapons
No more Lesions
he was fed up of his sins
he got bored of his wins
coz he knew he would always win
he is not thirsty for anyone’s blood
bow is missing, No arrows gonna flood
dead bodies were roaming
On Blood he was floating
This War is a Waste, He is Alone
Buddha is meditating in the War Zone
A Door is all what he seeks
After a deep thought,
He opens the door and speaks
Home is inside your Skin,
and World Outside your skin
SidTreenium : Self Portrait of an Element
ये सेल्फ़ पोर्ट्रेट यानी अपना शब्द चित्र बनाने की कोशिश है। बहुत समय पहले, मूलत: अंग्रेज़ी में लिखी थी।
Caffeine fighting with my dropping eyelids,
shrapnel on the periphery of my eyes..
poison of Nux Vomica in my head..
indeed Iron Man is sleepy
but metal doesn’t sleep !
Then why this Alloy of my Strength and Sleep exists..
Malleable, Ductile… Sharp… Sleepy..
May be I’m not the iron man
May be I’m 119th element of this earth..
yet to be confirmed
yet to be confirmed
Guide to Understand Whole Perspective
Caffeine (कॉफी या चाय) fighting with my dropping eyelids (पलकें),
shrapnel (छर्रे) on the periphery of my eyes (आंखों की किनारियां)..
poison of Nux Vomica (एक प्रकार का ज़हर, जिसका उपयोग होम्योपैथी में एक दवा के रूप में किया जाता है ) in my head..
indeed Iron Man is sleepy
but metal doesn’t sleep !
Then why this Alloy (मिश्रण) of my Strength and Sleep exists..
Malleable (लचीला), Ductile (खींचकर विस्तार देने लायक)… Sharp (नुकीला)… Sleepy (निद्रामग्न)
May be I’m not the iron man
May be I’m 119th element of this earth.. (118 Elements की खोज हुई है अब तक.. 119वां शायद आत्मा और शरीर का मिश्रण है)
yet to be confirmed
yet to be confirmed
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree