Blood Spots on Data Charts : आंकड़ों पर लगा ख़ून

आंकड़े पेश करने का चलन, तर्क के साधन के रूप में शुरू हुआ होगा। और तर्क एक तरह की वैक्स पॉलिश है जिससे विचारों को चमकाने का काम किया जाता है। पूरी दुनिया में हज़ारों वर्षों से ये होता आया है। और समय समय पर आंकड़ों के लेप से चमकते हुए तमाम विचारों में, ख़ून का लाल रंग भी नज़र आ जाता है।

चाणक्य ने एक बार कहा था – हो सकता है कि एक धनुर्धर का निशाना चूक जाए, लेकिन एक चालाक व्यक्ति द्वारा बनाई गई योजनाएं, गर्भ में पल रहे बच्चे को भी मार देती हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (कृत्रिम बौद्धिकता) के इस युग में भी आंकड़े यही कर रहे हैं। दवाओं और राजव्यवस्थाओं की मारक क्षमता छुपाने से लेकर विज्ञान और डर के नये नये बाज़ार बनाने तक, आंकड़ों का सामाजिक महाप्रयोग चल रहा है। आंकड़ों की बैसाखी दुनिया भर के लोगों को थमा दी गई है। और जिसके हाथ में बैसाखी हो, वो नारे नहीं लगा सकता, आवाज़ नहीं उठा सकता, आंकड़ों पर लगा ख़ून साफ़ नहीं कर सकता।

Cold Facts : बुद्धिजीवी बनाने वाले आंकड़े

चलो दुनिया की फिक्र कर लें,
मोमबत्ती जला लें, थोड़ा ज़िक्र कर लें,
गर्मी.. भूख.. जनसंख्या..
महंगाई.. महामारी.. बलात्कार
इस ठंडे दौर में..
एयर कंडिशनर की ठंडी हवा में
ये सारे आंकड़े बहुत दिलचस्प लगते हैं

मैं उस समाज का हिस्सा हूं
जो आंकड़ों पर लगे ख़ून को
नल के नीचे पानी से धो देता है
इसके बाद आंकड़े देखने से आंख नहीं जलती
ज़ुबान पर भी नहीं चुभते ये आंकड़े
बस फिसलते जाते हैं बातों में
ये आंकड़े ऐतिहासिक हैं
क्योंकि इन्होंने एक बुद्धिजीवी समाज की रचना की है

Mathematics : गणित

कमरे में आंकड़ों का शोर है
मेरे आसपास आंकड़े रहते हैं
जैसे ही ये थोड़े दूर होते हैं
मैं सोचना शुरू कर देता हूं
मैं सोच पाता हूं
शायद आप भी सोच पाएंगे

© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree