Reference : A Poem titled ‘Tolerance’
मां ने हमें सहना सिखाया,
तंगहाली में रहना सिखाया
जब ज़माने ने मारी ठोकरें
कपड़े झाड़कर बढ़ना सिखाया
ऊंचाई पर खड़े हुक्मरानों से
कर्री बात कहना सिखाया
जीतकर रोने वाली भीड़ में
हारकर नाचना, हँसना सिखाया

© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree