अ-सामाजिक कविताएँ : Anti Social Poems

सोशल मीडिया के इस दौर में मानव स्वभाव को रेखांकित करते हुए, मैंने 8 कविताएँ लिखी हैं। ये एक श्रृंखला है जिसका शीर्षक है “अ-सामाजिक कविताएँ” यानी “Anti Social Poems”। इन कविताओं में आपको आज का Wireless समाज देखने को मिलेगा। इन्हें पढ़ने के बाद आपके मन में कौन से भाव आए.. ये ज़रूर बताइयेगा

  1. Profile Picture : तस्वीर पर माला डाल देते हैं दोस्त
  2. Direct Message vs मुलाक़ात
  3. Verified : अहं ब्रह्मास्मि… ज़हर सा नीला निशान ✓
  4. Trolls : मच्छर
  5. Unfriend : अ-मित्र
  6. Divide vs Share : बाँटना vs बाँटना
  7. Fake Account : कौन हो तुम ?
  8. Likes & Retweets : इंतज़ार
Profile Picture : तस्वीर पर माला डाल देते हैं दोस्त

इस कविता के दो हिस्से है, एक ध्वनि है और दूसरी प्रतिध्वनि, पढ़िए और चुभन को महसूस कीजिए।

ध्वनि (Sound)

वाह-वा और दाद देने वाले असली हाथ
अब नहीं पहुंच पाते कंधे तक
बस निर्जीव ‘प्रोफाइल पिक्चर’ पर
हर रोज़ माला चढ़ा देते हैं दोस्त

यार बहुत हैं
प्यार बहुत है
बहुत चाहते हैं मुझे
इसलिए अब मुझे दीवार पर फ़ोटो बनकर टंगे रहना अच्छा लगता है
मान-सम्मान-अपनापन और वजूद
घर बैठे मिल रहा हो
तो मुलाक़ातें बोझ लगती है

प्रतिध्वनि (Echo)

देखो, गले में कितने हार हैं !!
जैसे कोई नेता है और चमचे चार हैं
अलग अलग कोण से ली जा रही तस्वीर में
लोकप्रिय होने की चाहत है
लेकिन… कुछ ही घंटों के बाद…
तारीफों की ये मालाएं सूख जाती हैं
और कैमरा फिर ढूंढने लगता है
अपने ही जीवन का कोई ऐसा कोना
जो दिखाया जा सके
ये दिखाना..
उस पीढ़ी की दिनचर्या है..
जिसने अपने अंदर कभी देखा ही नहीं

Direct Message vs मुलाक़ात 

बातों, ख़ामोशियों के कुछ नर्म घूंट पीने हों 
तो प्याला एक मुलाक़ात का है 
अंगुली में अटका हुआ 
बस अपने होंठों को इजाज़त दे दो 

उत्तर में एक Direct Message आया है लिखा है.. 
हम-तुम नेटवर्क से जुड़े हुए हैं 
हम-तुम एक दूसरे को ‘Like’ करते हैं 
हर रोज़ एक दूसरे को शब्दों से छूते हैं
हमें ये दूरियां बनाए रखनी होंगी 
Logout वाला एकांत हम दोनों के लिए ज़रूरी है 

Verified : अहं ब्रह्मास्मि... ज़हर सा नीला निशान !  

ईश्वर ने कुछ इंसानों को बनाते वक़्त
उनके माथे पर सही का निशान लगा दिया था
फिर वो हमेशा सही साबित होते रहे
उनकी हर एक ग़लती को छिपाने के लिए
सेनाओं की बलि बार बार दी जाती रही

Trolls : मच्छर 

अपने वज़न से ज़्यादा खून पी लेने वाला मच्छर 
उड़ नहीं सकता 
चाहकर भी डंक नहीं मार सकता 
भिनभिनाना ही उसकी ड्यूटी है 
तालियां भी उसके लिए 
मौत लेकर आती हैं

Unfriend : अ-मित्र

मेरे अंतर्मन में आप
एक जल चुकी मोमबत्ती की तरह हैं..
जिसकी रोशनी और जिसका मोम..
विलीन हो चुका है
और धागे के जलने की ज़रा सी महक बाक़ी है
कुछ देर में आप खो जाएँगे..
मेरे वातावरण में

Divide vs Share : बाँटना vs बाँटना

अब विचार और संदेसे
कबूतर की तरह उड़ जाते हैं
कोई सरहद नहीं है
किसी वीज़ा और पासपोर्ट की ज़रूरत नहीं है
किसी युग में
इंसानों ने ज़मीन बाँट दी थी
अब अपनी ही खींची लकीरों को
इंटरनेट से मिटा रहे है

Fake Account : कौन हो तुम ?

सुबह सुबह अपने चेहरे पर रंग लगाकर निकलते हैं
इन बच्चों की असली शक्ल देखी है किसी ने ?
ज़माने को बेचने चले थे
रक्त स्नान करके चुपचाप निकल रहे थे घर से
अचानक माँ ने रोककर पूछ लिया
कौन हो तुम ?

Likes & Retweets : इंतज़ार

तस्वीरों में शोक और हर्ष स्थिर हो जाता है
संवेदनाएँ ठिठक कर खड़ी हो जाती हैं
और थोड़ी ज़्यादा साफ़ दिखती हैं
जैसे किसी प्रागैतिहासिक रत्न में कीट जम जाते हैं
और वो जीवन और मृत्यु के बीच की लकीर मिटाकर
खुद को निहारे जाने का इंतज़ार करते रहते हैं

सुना है अब तस्वीरें बादलों में रहती हैं
क्या उनमें क़ैद चेहरों..
और चेहरों में छिपी असली संवेदनाओं को
कोई देख पाता होगा ?
क्या इन्हें किसी Like और Retweet का इंतज़ार है ?

© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree