अ-सामाजिक कविताओं की सीरीज़ में तीसरी कविता, कम से कम सात कविताएँ हैं। उम्मीद है कि आपको अच्छी लगेंगी। सोशल मीडिया के इस दौर में मुलाक़ात का महत्व कम होता जा रहा है। अब डायरेक्ट मैसेज से काम चल जाता है, नज़दीकियों की जगह नेटवर्क ने ले ली है
बातों, ख़ामोशियों के कुछ नर्म घूंट पीने हों
तो प्याला एक मुलाक़ात का है अंगुली में अटका हुआ
बस अपने होंठों को इजाज़त दे दो
उत्तर में एक Direct Message आया है
लिखा है..
हम-तुम नेटवर्क से जुड़े हुए हैं
हम-तुम एक दूसरे को ‘Like’ करते हैं
हर रोज़ एक दूसरे को शब्दों से छूते हैं
हमें ये दूरियां बनाए रखनी होंगी
Logout वाला एकांत हम दोनों के लिए ज़रूरी है
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree
सही है सर नज़दीकियों की जगह नेटवर्क ने ले ली है! और रिश्तों में “Login – Logout” तो ठीक है पर “Delete” जैसा कुछ भी नहीं होना चाहिये नही तो मुलाक़ात भी नहीं और “Direct Message” तो भूल ही जाओ।😐