सोशल मीडिया के इस दौर में मानव स्वभाव को रेखांकित करते हुए, मैंने कुछ कविताएँ लिखी हैं। ये एक सीरीज़ है जिसका शीर्षक है “अ-सामाजिक कविताएँ : Anti Social Poems”
पहला नंबर है – प्रोफ़ाइल पिक्चर का.. इसके दो हिस्से है, एक ध्वनि है और दूसरी प्रतिध्वनि, पढ़िए और बताइये.. कैसी लगी
ध्वनि (Sound)
वाह-वा और दाद देने वाले असली हाथ
अब नहीं पहुंच पाते कंधे तक
बस निर्जीव ‘प्रोफाइल पिक्चर’ पर
हर रोज़ माला चढ़ा देते हैं दोस्त
यार बहुत हैं
प्यार बहुत है
बहुत चाहते हैं मुझे
इसलिए अब मुझे दीवार पर फ़ोटो बनकर टंगे रहना अच्छा लगता है
मान-सम्मान-अपनापन और वजूद
घर बैठे मिल रहा हो
तो मुलाक़ातें बोझ लगती है
प्रतिध्वनि (Echo)
देखो, गले में कितने हार हैं !!
जैसे कोई नेता है और चमचे चार हैं
अलग अलग कोण से ली जा रही तस्वीर में
लोकप्रिय होने की चाहत है
लेकिन… कुछ ही घंटों के बाद…
तारीफों की ये मालाएं सूख जाती हैं
और कैमरा फिर ढूंढने लगता है
अपने ही जीवन का कोई ऐसा कोना
जो दिखाया जा सके
ये दिखाना..
उस पीढ़ी की दिनचर्या है..
जिसने अपने अंदर कभी देखा ही नहीं
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree