इस दौर में हर इंसान पूरी तरह भरा हुआ है, उसके अंतर्मन में या जीवन में किसी और के लिए कोई जगह नहीं है। पहले लोग टकराते थे तो एक दूसरे में छलक पड़ते थे, लेकिन अब किसी दूसरे को सहने या समाहित करने का माद्दा लगभग ख़त्म हो गया है। आने वाले दौर में, संसार में कंधे कम होंगे और रोने वाले ज़्यादा होंगे। अनुभवों को भरने के लिए खाली जगह की भारी कमी होगी।
हम सब लबालब भरे हुए कप हैं
कोई चीयर्स भी कह दे
तो छलक पड़ते हैं
इन भरे हुए प्यालों को
दूर दूर तक कोई ख़ाली प्याला दिखाई नहीं देता
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree