कांच के कप में भरी हुई काली कॉफी का घुप्प अंधेरा
और सतह पर नींद के सफेद बुलबुले
जैसे किसी पुरानी बावली की सीढ़ियाँ,
ऊपर.. अंधेरे से उजाले की तरफ़ जा रही हों
गले से उतरते हर घूंट के साथ
वो नींद का दामन छोड़ रहा था
नींद ने एक बार उसके हाथ को कसकर पकड़ा
और फिर आज़ाद कर दिया उसे
कहा – “जाओ, हम फिर मिलेंगे
तुम्हारे इस व्यापार के.. उस पार
आंखों के खारे समंदर के किनारे
वहां हम नमक से
अपने झूठे सम्मान की बेड़ियां गलाएंगे
कुछ नया बनाएंगे”
ये सुनने के बाद वो कभी सो नहीं पाया
© Siddharth Tripathi ✍️SidTree