Rock Song : चूर चूर अभिमान

आपने किसी ढाबे में या घर में.. चूर-चूर नान या रोटियाँ तो ख़ूब खाई होंगी.. लेकिन क्या कभी अपने अंदर मौजूद अभिमान को चूर-चूर करने की कोशिश की है ? इस कॉन्क्रीट को तोड़ने की कोशिश की है ? शायद नहीं की होगी… असलियत में इस बात पर कभी ध्यान ही नहीं गया होगा कि अंदर क्या चल रहा है? क्यों चल रहा है? ये एहसास ही नहीं हुआ होगा, कि आप अंदर से इतने सख़्त कब हो गये ? अभिमान के इस कॉन्क्रीट में उस दिन दरार पड़ेगी जिस दिन मन की कोई खिड़की खुली छूट जाएगी.. और ना चाहते हुए भी संगीत की कोई धुन, आकर इस कॉन्क्रीट से टकरा जाएगी। इसके बाद आपको लगेगा कि बार-बार वो धुन सुनी जाए… ताकि उसकी चुभन और सिहरन बार-बार महसूस हो। कई बार आप बार बार एक ही गाना सुनते रहते हैं। इसका असर ठीक वैसा ही है.. जैसे किसी एक स्थान पर हथौड़े की असंख्य चोटें बार बार मारी जा रही हों। ऐसी ही चोटों से कलाकृतियाँ बनती हैं.. इसलिए कुछ लोग एक ही धुन बार-बार सुनते हैं… एक ही ख़्वाब बार-बार देखते हैं। (* वैसे सचिन तेंदुलकर के बारे में ये बात मशहूर है कि वो एक ही गाना बार बार सुनते रहते हैं)


सुन रहा हूँ एक रॉक सॉन्ग
ड्रम्ज़ की थाप और गिटार की बिजली टकरा रही है आकर
मेरे अंदर कुछ टूट रहा है

बार-बार सुनता रहूँगा इसे
जब तक अंदर का कॉन्क्रीट टूटकर चूर चूर ना हो जाए
मिट्टी ना बन जाए
क्योंकि मिट्टी में अकड़ नहीं होती
मिट्टी में फूल उगते हैं
स्वप्न को उगकर शालीन होने का सलीक़ा भी
मिट्टी से ही मिलता है


© Siddharth Tripathi ✍️SidTree