This Poem explores Moon as a communication satellite between Human Bodies, Human Souls and Human thoughts.
दर्द और खुशी जब अंगड़ाई लेते हैं

तो चिटकती है रात
पूरी कायनात
और तमाम चेहरे अपने से
उड़ते हैं जुगनुओं की तरह
लेकिन नज़र
आसमान में चांद को ढूंढती है
और उससे चिपक जाती है
चांद निकलता है तो मैं और तुम जुड़ जाते हैं
चंदा तुम्हारा, मेरा, हम सबका है
दुनिया के अलग अलग कोनों में
अलग अलग इंसानों की आंखें
हर पल इसी चांद को छूती है
धरती के चारों तरफ घूमता ये चांद
हमारे शरीरों और विचारों के बीच अदृश्य पुल बनाता
एक संचार उपग्रह है
चांद निकलता है तो मैं और तुम जुड़ जाते हैं
ये चांद सिर्फ धरती का नहीं..
हमारे शरीर, आत्मा और विचारों का भी उपग्रह है
© Siddharth Tripathi ✍️SidTree