Arrows Continued : दैनिक दशानन

Arrows Continued

जलकर, भस्म होकर
फिर से खड़ा हो जाता है
नाभि में तुम्हारे तीर का स्वागत करने के लिए
दशानन थक नहीं रहा
इसलिए तुम्हें भी
मर्यादाओं की प्रत्यंचा बार बार चढ़ानी होगी
बार बार भेदना होगा लक्ष्य
कि तुम भी थक नहीं सकते
अब हर रोज़ नये रावण हैं
नयी विजयादशमी है हर रोज़