आज़ादी एक ऐसा शब्द है जिसका विस्तार अनंत है, और इस विस्तार में कई बार सैकड़ों भाव और स्थितियां समाहित हो जाते हैं। आज़ादी के संदर्भ में देखें तो हर एक पल की अपनी अलग-अलग स्वतंत्रता है। एक ही दिन में आप कई बार खुद को आज़ाद महसूस करते हैं और बहुत बार खुद को गुलामों की तरह सिर झुकाए खड़ा हुआ देखते हैं।
हर रोज़ आप आज़ादी की एक लड़ाई लड़ते हैं.. हर रोज़ भारत छोड़ो आंदोलन होता है.. हर रोज़ स्वतंत्रता दिवस होता है। ऐसे अनेक लम्हों/स्थितियों को मैंने कई तरह से लिखने/कहने की कोशिश की है। ये पिछले 8-9 वर्षों का काम है।
आज़ादी: Melt chains & Fly
अंगारे आराम फर्मा रहे हैं: Sparks are Sleeping
काले गुलाब: Black Roses
आज सच थोड़ा ज़्यादा हो गया: Truth Hurts
ड्यूटी पर शब्द! : Words Born Free?
आज़ाद रफ़्तार: Horse Power
दाना.. पानी.. गुलामी: Hired & Tired
गणित की चौखाने वाली कॉपी में लिखे नंबर : Numbers
इन्हें पढ़िये और जब तक सांस चल रही है.. तब तक पूरी शिद्दत से हर पल स्वतंत्रता दिवस मनाते रहिए। स्वतंत्रता दिवस किसी एक देश का नहीं होता, वो पूरी मानवता का होता है। मैंने जो भी लिखा है, देश, काल, परिस्थितियों से आज़ाद होकर लिखा है।
आज़ादी : Melt chains & Fly

बाहर काया गल रही है
अंदर रूह मचल रही है
आज आज़ादी का दिन है
आज बाहर निकलना है
जगाते हैं जो सवाल
उनसे चाय पर मिलना है
कर लेंगे यारी उनसे
तभी जवाब मिलना है
पर मेरी मान तू खो जा
छोड़ लेन देन का धोखा
आंखों पर हाथ सा गुज़रने दे
बस पलक मूंद चलने दे
चार आंसू हैं बहने दे
थकन शिकन अब भूल जा
ज़ोर लगा, ज़ंजीर छुड़ा
उड़ जा, उड़ जा
International Version
Inside the Body
Soul is crying
Tears are drying
Why not i m flying
Was Born free
I’m Chained, see
big Illusion
big confusion
Arrows of Anger
Silence is a Danger
Eyes seeing in the sky
Melt chains and Fly
अंगारे आराम फर्मा रहे हैं : Sparks are Sleeping
When Sparks are sleeping, revolution is light years away.

अंगारे आराम फर्मा रहे हैं
लबालब हैं.. तपिश से
मगर हवा खा रहे हैं
राख उड़ा रहे हैं
अंगीठी में दफ़्न
चाय पिला रहे हैं
कोई इनसे पूछे
पिछली बार कब
इन्हें गुस्सा आया था
कब अपने अंदर की नपुंसकता मारने को
ये जले थे
कब दबे कुचले की मशाल बने थे
कब अंधेरी राह को रौशन किया था
आंखें तरस गईं अंगारे देखने को
काश, ये गहरे जलते
ज़ेहन पर क्रांति मलते
पर अफसोस…
संसार जल रहा है
आराम चल रहा है
काले गुलाब : Black Roses
Immense Pride and Direction less Anger always hurts, it never helps.

गुलदस्ता जला देने पर
कोई मुक़द्दमा तो दर्ज नहीं हुआ
लेकिन उसे हर बार हँसते हुए
अंदर कुछ जलता हुआ महसूस होता था
राख के कण
लाल हो चुकी, आँखों की गीली सतह पर बैठते जा रहे थे
आँखों में आग और सतह पर राख
ये धधकते हुए काले गुलाब हैं
इनसे किसी को ज़िंदा जलाए जाने की दुर्गंध आती है
हमें इन काले गुलाबों से ‘आज़ादी’ चाहिए
आज सच थोड़ा ज़्यादा हो गया : Truth Hurts
This is a thought on compromises made during quest for Success ! Its casualty of Freedom
एकलव्य ने तो अँगूठा दिया था, यहाँ क़ौम दोनों हाथ कटाए बैठी है
बिना हाथ वाले धड़ की गर्दन
झुकते झुकते ज़माने के पैरों तक कब पहुँच जाती है
पता ही नहीं चलता
गर्दन पैरों पर, नाक जूतों पर
और नाक पर तो बारूद भी नहीं होता
कि रगड़ने पर जल जाए
कुछ जूतों की चमक के लिए भीड़ नाक रगड़ रही है
सवाल है कि आग कब लगेगी ?
ये सोचते सोचते
हिंदुस्तान गलकर आधा हो गया
आज सच थोड़ा ज़्यादा हो गया
ड्यूटी पर शब्द ! : Words Born Free ?
Words on duty? on hire ? Where are the words which bring a change in society?
अच्छा होता अगर
मेमने जैसे शब्द, शेर बनते
क्योंकि मेमने क्रांति नहीं लाते
फैक्ट्री में थोक के भाव आते है
9 से 5 नौकरी करते हैं जाते हैं
शेर की तरह स्वच्छंदता से घूमते हुए
अपना अर्थ सिद्ध करते जाना अच्छा है
नौकरी करते और EMI भरते शब्द
समाज को कुछ नहीं दे सकते
Horse Power – आज़ाद रफ़्तार
ये घोड़ा दौड़ रहा है
ठीक वैसे ही जैसे आप दौड़ रहे हैं
हर रोज़
नाक से रस्सी गुज़रने के बावजूद
जान लगाकर दौड़ने के लिए
अपनी आज़ाद रफ़्तार को
किसी और के हवाले करने के लिए
कुछ सीटियां, कुछ तालियां
तो होनी ही चाहिए
दाना.. पानी.. गुलामी : Hired & Tired
सारे घोड़े थके हुए हैं
अस्तबल के भोजन पर डटे हुए हैं
चारों तरफ खुशहाली है
तनख़्वाह आने वाली है
गणित की चौखाने वाली कॉपी में लिखे नंबर : Numbers
धमाके होते हैं
नेता इस्तीफा देते हैं
सरकारें भी सौंपती हैं त्यागपत्र कई बार
परंतु जनसंख्या..
जो कि सिर्फ एक संख्या है अब
नहीं करती कोई त्याग
उसके पास छोड़ने के लिए कुछ नहीं होता
गणित की चौखाने वाली कॉपी में लिखे नंबर की तरह जीते हैं
और फिर फिर माँगते हैं आज़ादी
हर बरस
© Siddharth Tripathi ✍️ SidTree