i-राम : Rama’s Vision in 21st Century

श्रीराम को एक नई दृष्टि से देखने की कोशिश की है, उम्मीद है आपको पसंद आएगी। ये लेख आगे और विस्तृत रूप भी ले सकता है, अगर आपके पास इससे जुड़ी हुई कोई जानकारी है तो आप कमेंट के ज़रिए मुझे बता सकते हैं।  देखने और परखने के बाद मैं इसमें जोड़ दूँगा।

पूज्य पुरुषों को चेहरा देने वाले पेंटर राजा रवि वर्मा का ‘श्री राम दरबार’

राम की शिक्षा एक आदर्श शिक्षा है, राम एक आदर्श शिष्य हैं, वो पूरे जीवन ऋषि-मुनियों और बुज़ुर्गों से उनके अनुभवों को सोखते रहते हैं। राम कभी भी बुज़ुर्गों को Outdated नहीं मानते। वो अपनी पिछली पीढ़ी द्वारा अर्जित शक्तियों को अपना गर्व बना लेते हैं।

राम एक आदर्श पुत्र हैं, वो अपनी मां और पिता के आदेश पर 14 वर्षों के लिए वनवास पर चले गए थे। लेकिन आज के दौर में हमें अक्सर बेटों द्वारा माता-पिता को घर से बाहर निकालने की ख़बरें मिलती हैं, और हर बार राम याद आते हैं ।

आदर्श पुत्र के साथ ही राम एक आदर्श भाई भी हैं। युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण मूर्छित हुए तो राम की आंखों में आंसू आ गये थे। जब तक हनुमान जी संजीवनी बूटी लेकर नहीं आए.. राम, लक्ष्मण के पास ही बैठे रहे । लेकिन आज भाई, भाई का दुश्मन है। परिवार टूट रहे हैं। भाईयों के बीच ऐसे आदर्श रिश्ते आज बहुत कम देखने को मिलते हैं

राम एक आदर्श पति हैं, वो सीता के लिए रावण का वध करते हैं। और एक पति के रूप में अपना कर्तव्य निभाते हैं…

राम को वनवास का दुख नहीं होता.. और जब उन्हें अपना राज-पाट वापस मिलता है, तो उनमें किसी तरह का अहंकार नहीं दिखाई देता।

राम की शासन व्यवस्था को आदर्श माना जाता है। रामचरितमानस में तुलसीदास जी कहते हैं –

राम राज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।।
बयरु न कर काहू सन कोई। राम प्रताप विषमता खोई।।
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।
अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुंदर सब बिरुज सरीरा।।
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना।।
सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी। सब कृतग्य नहिं कपट सयानी।।
राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।
काल कर्म सुभाव गुन कृत दुख काहुहि नाहिं।।

यानी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के सिंहासन पर आसीन होते ही सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया, सारे भय–शोक दूर हो गए एवं दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति मिल गई। कोई भी अल्पमृत्यु, रोग–पीड़ा से ग्रस्त नहीं था, सभी स्वस्थ, बुद्धिमान, साक्षर, गुणज्ञ, ज्ञानी तथा कृतज्ञ थे।

वाल्मीकि रामायण में ऐसे ज़िक्र भी मिलते हैं कि राम राज्य में किसी को कोई ज़िम्मेदारी हमेशा के लिए नहीं सौंपी जाती। वहां स्थानांतरण का ज़िक्र मिलता है.. यानी Transfers होते रहते थे और मान-दान की व्यवस्था थी। इसका मतलब ये है कि काम का सम्मान और धन का उचित भुगतान।

आज श्री राम के नाम पर राजनीति तो बहुत होती है, लेकिन कोई नेता राम के आचरण से कुछ नहीं सीखता। आज के दौर में सत्ता के लिए सभी मर्यादाएं दांव पर लगा दी जाती हैं । लेकिन श्रीराम को सत्ता का लोभ कभी नहीं रहा । किसी के राज्य पर कब्ज़ा करना या उसे हड़पना उनका उद्देश्य कभी नहीं रहा। वो चाहते तो लंका पर कब्ज़ा कर सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। बल्कि रावण का वध करके विभीषण को लंका का राजा बनाया और खुद अयोध्या लौट गए।

ऐसा ही उन्होंने सुग्रीव के साथ भी किया । सुग्रीव के बड़े भाई बालि का वध करके उन्होंने सुग्रीव को राजा बनाया । इसका एक अर्थ ये भी है कि उन्होंने स्थानीय लोगों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए। सत्ता का नियंत्रण लोकल नेताओं को दिया।

वैसे तो श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, लेकिन उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि उन्होंने बालि को धोखे से मारा था । किष्किंधा के राजा बालि को ये वरदान प्राप्त था, कि युद्ध के दौरान जो भी दुश्मन, बालि के सामने आएगा, उसकी शक्ति आधी हो जाएगी। इसलिए राम ने बालि को छुपकर मारा था । इसके लिए कई बार कुछ विद्वान उनकी आलोचना भी करते हैं लेकिन नोट करने वाली बात ये है कि श्री राम ने धर्म और सत्य की रक्षा के लिए अपनी ये आलोचना भी स्वीकार कर ली। आज के दौर में इस गुण की बहुत कमी है।

वैसे तो श्रीराम को सौम्य, शालीन, धीर-गंभीर, वीर और त्यागी कहा जाता है। लेकिन जब ज़रूरत पड़ती है तो वो अपना क्रोध भी दिखाते हैं।  लंका जाने के लिए समुद्र में मार्ग बनाने के लिए श्रीराम ने समुद्र से तीन दिनों तक विनती की और ये कहा कि उनकी सेना को समुद्र पार करने दिया जाए। लेकिन जब समुद्र नहीं माना तो राम ने शस्त्र उठाकर समुद्र को सुखाने की धमकी दी। और इसके बाद समुद्र डरकर मान गया। ये पूरा प्रसंग रामचरितमानस के सुंदरकांड में विस्तार से लिखा हुआ है।

बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति
बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति

लछिमन बान सरासन आनू
सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु
सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति
सहज कृपन सन सुंदर नीति

ममता रत सन ग्यान कहानी
अति लोभी सन बिरति बखानी
क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा
ऊसर बीज बएँ फल जथा

इस प्रसंग से चुने हुए हिस्से ही मैंने यहां शामिल किए हैं, इनमें कुछ अच्छी बातें हैं जिन्हें अपने आचार विचार में समाहित किया जा सकता है

तीन दिन बीत गए, लेकिन समुद्र ने राम की विनती नहीं मानी। तब श्रीराम क्रोध सहित बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती! हे लक्ष्मण! धनुष-बाण लाओ, मैं अग्निबाण से समुद्र को सोख डालूँगा।

यहां राम कहते हैं –
मूर्ख से विनय, कुटिल के साथ प्रीति,
स्वाभाविक रूप से कंजूस व्यक्ति से सुंदर नीति,
ममता में फँसे हुए मनुष्य से ज्ञान की कथा,
अत्यंत लोभी से वैराग्य का वर्णन,
क्रोधी से शांति की बात
और कामी व्यक्ति को भगवान की कथा सुनाने का
वैसा ही फल मिलता है जैसा बंजर ज़मीन में बीज बोने से मिलता है।

राम बहुत अच्छे Organiser भी थे, जब वनवास पर गए तो सिर्फ तीन लोग थे, श्रीराम, सीता और लक्ष्मण, लेकिन जब सीता हरण के बाद लंका पर आक्रमण किया, तो उनके साथ लाखों की सेना थी, जिसमें वानर, रीछ और दूसरे कई जानवर शामिल थे। सुग्रीव के साथ साथ रावण का छोटा भाई विभीषण भी उनके साथ काम कर रहा था। ये राम के कूटनीतिक गुण है.. जिनकी कोई तुलना नहीं की जा सकती।

आज के दौर में पूरा देश VIP कल्चर से परेशान है। अपने आपको VIP समझने वालों को भी श्रीराम के आचरण से सीखना चाहिए। श्रीराम ने हमेशा अपने से कमज़ोर लोगों को अपनी बराबरी पर बिठाया। उन्हें सहर्ष स्वीकार किया। केवट के साथ उनका व्यवहार और सुग्रीव के साथ उनकी मित्रता इसका प्रमाण है। तब लाल बत्तियों वाली गाड़ियां तो नहीं होती थीं.. लेकिन अगर होती तो राम उन पर ज़रूर प्रतिबंध लगवा देते।

श्रीराम के लिए छूआ-छूत, अमीर गरीब, ऊंच-नीच जैसा कोई भेदभाव नहीं था। शबरी के जूठे बेरों को प्रेम से खाना, केवट को गले लगाना, वानर और भालुओं को प्रेम और स्नेह देकर उन्हें अपना बनाना। ये सब राम से सीखने वाली बातें हैं। लेकिन आज के दौर में हमारे देश में दलितों या पिछड़ों के कल्याण के लिए सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी होती है.. राम जैसी इच्छाशक्ति और आचरण देखने को नहीं मिलता।

एक मज़ेदार बात ये भी है कि – राम को कंप्यूटर की भाषा में RAM के समान भी माना जा सकता है। ये बात तार्किक तौर पर सही है क्योंकि राम वाली RAM से आपकी आध्यात्मिक और सांसारिक गति बढ़ सकती है।

ये छोटी सी कोशिश है, अगर आगे इस संदर्भ में कुछ और बातें जोड़ पाया तो ज़रूर जोड़ूंगा, मेरे पास राम की वंशावली भी है जिसका एक चार्ट बनाकर आप सबके साथ शेयर करूंगा


© Siddharth Tripathi, 2016
ये पोस्ट एक तरह की व्याख्या है, इसे सम्मान और link के साथ कोई शेयर करे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी। कॉपी पेस्ट करके शेयर करने के बजाए लिंक पोस्ट करें