Partition and Paper Boats : विभाजन और कागज़ की नाव

When the line between sleep and consciousness is smudged, you find yourself flowing on a paper boat.


नींद और चेतना के बीच की सीमा रेखा पर
मैंने उँगली फेर दी है
धुँधली हो चुकी है वो लकीर,
रेगिस्तान की रेत, हरे भरे पेड़, लोहे की कंटीली तारें
सब पिघल गये हैं.. आपस में मिल गये है
बह गये हैं भावनाओं की नदी के उस पार

विभाजन के मायने अब ख़त्म हो गये हैं
बँटवारे की एक भी सिसकी नहीं है यहाँ
सब कुछ बह रहा है
आँखों से… आँखों तक
जैसे गंगा-जमुना मिलती हैं
नींद भी जागृति में मिल गई है
इस संगम में
काग़ज़ की नाव की तरह मैं बह रहा हूँ

ज़मीन पर तो ऐसा नहीं हो सकता
कोई बादल ही रहा होगा
जिस पर हर वक़्त ये यात्रा चलती रहती है


© Siddharth Tripathi  *SidTree
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